शाहरूख का संसार केवल कैमरे की रोशनी में नहीं बसता, वह उन छोटे शहरों की आकांक्षाओं में भी है, जहां अब भी लोग मानते हैं कि लगन से तकदीर बदली जा सकती है। उन्होंने अभिनय को आकर्षण से आगे जाकर आत्मा की भाषा दी, कभी ‘राज’ बनकर मुस्कुराया, कभी ‘चक दे’ की पुकार में बदल गया। हर जन्मदिन पर चाहने वालों की भीड़ के आगे जब शाहरुख खड़े होते हैं, तब लगता है कि यह सिर्फ एक अभिनेता का जश्न नहीं, बल्कि उस सपने का उत्सव है, जो हर नौजवान के भीतर पलता है। शाहरुख खान इस अर्थ में एक व्यक्ति नहीं, एक प्रतीक हैं, इस देश की उस बेचैन ऊर्जा का, जो हार नहीं मानती, जो बार-बार उठती है और कहती है- ‘पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त’।



