प्रख्यात साहित्यकार आचार्य रामदरश मिश्र के निधन से हिंदी साहित्य जगत में शोक की लहर है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी श्री मिश्र के निधन पर श्रद्धांजलि अर्पित की है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि हिंदी के प्रख्यात साहित्यकार प्रोफेसर रामदरश मिश्र का निधन साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। वह अपनी कृतियों के माध्यम से सदैव लोगों के मन में जीवित रहेंगे।
गोरखपुर जिले के कछार अंचल के डुमरी गांव में जन्मे मिश्र ने अपने दीर्घ साहित्यिक जीवन में 150 से अधिक पुस्तकें लिखीं। उनकी रचनाओं में ग्रामीण और शहरी जीवन का गहन चित्रण, आम आदमी का संघर्ष, संवेदना और यथार्थ की सजीव अभिव्यक्ति देखने को मिलती है। उनकी पंक्तियां, ‘न हंसकर, न रोकर किसी में उड़ेला, पिया खुद ही अपना जहर धीरे-धीरे’ आज भी पाठकों के दिलों में गूंजती हैं।
आचार्य मिश्र ने कविता, कहानी, उपन्यास, आलोचना, निबंध, आत्मकथा, संस्मरण और यात्रा-वृत्तांत जैसी सभी विधाओं में लेखन किया। उनके यात्रा अनुभव ‘तना हुआ इंद्रधनुष’, ‘भोर का सपना’, ‘घर से घर तक’, ‘देश-यात्रा’ और ‘पड़ोस की खुशबू’ जैसी कृतियों में जीवंत रूप से व्यक्त हुए हैं। उन्होंने ‘स्मृतियों के छंद’, ‘अपने-अपने रास्ते’ और ‘एक दुनिया अपनी’ जैसी संस्मरण पुस्तकों में साहित्यिक मित्रों और प्रेरणास्रोतों को सादगी और आत्मीयता के साथ याद किया।
1951 में प्रकाशित पहला कविता संग्रह ‘पथ के गीत’ से साहित्य जगत में कदम रखने वाले मिश्र के अब तक ‘बैरंग-बेनाम चिट्ठियां’, ‘पक गई है धूप’, ‘कंधे पर सूरज’, ‘दिन एक नदी बन गया’ और ‘जुलूस कहां जा रहा है’ जैसे 15 से अधिक कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी गजल संग्रह ‘ऐसे में जब कभी’, ‘आम के पत्ते’, ‘तू ही बता ऐ जिंदगी’ और ‘हवाएं साथ हैं’ पाठकों में अत्यंत लोकप्रिय हुए। आचार्य मिश्र के ललित निबंध संग्रह ‘कितने बजे हैं’, ‘बबूल और कैक्टस’, ‘घर-परिवेश’ तथा ‘छोटे-छोटे सुख’ भाषा की सहजता और जीवन के यथार्थ के लिए सराहे गए। आलोचना के क्षेत्र में ‘हिंदी कविता-आधुनिक आयाम’, ‘हिंदी कहानी- अंतरंग पहचान’, और ‘छायावाद का रचनालोक’ जैसी कृतियां उल्लेखनीय हैं।
पुरस्कार और सम्मान
आचार्य मिश्र को उनके योगदान के लिए सरस्वती सम्मान, साहित्य अकादमी पुरस्कार, व्यास सम्मान, श्लाका सम्मान सहित कई प्रतिष्ठित सम्मान मिले। इसी वर्ष उन्हें साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए पद्मश्री सम्मान से अलंकृत किया गया था।
शैक्षणिक जीवन
गांव में प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने वाराणसी जाकर काशी हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक, स्नातकोत्तर और पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने बड़ौदा के सयाजीराव गायकवाड़ विश्वविद्यालय, गुजरात विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन किया तथा 1990 में प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्त हुए।
उनकी रचनाएं आज भी मार्गदर्शक
गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रो. विमलेश मिश्र ने कहा कि आचार्य रामदरश मिश्र, फणीश्वरनाथ रेणु की परंपरा के सशक्त आंचलिक कथाकार थे। उनकी कहानियों में गांव की मिट्टी, लोगों की संवेदना और यथार्थ की सच्ची झलक मिलती है। उनकी आलोचनात्मक रचनाएं आज भी साहित्य प्रेमियों और विद्यार्थियों के लिए मार्गदर्शक हैं।
महत्वपूर्ण कृतियां
- काव्य: पथ के गीत, कंधे पर सूरज, दिन एक नदी बन गया, बाजार को निकले हैं लोग
- उपन्यास: पानी के प्राचीर, जल टूटता हुआ, सूखता हुआ तालाब, अपने लोग, रात का सफर
- कहानी संग्रह: खाली घर, दिनचर्या, सर्पदंश, बसंत का एक दिन
- आत्मकथा: सहचर है समय
- डायरी: आते-जाते दिन, विश्वास जिंदा है



