एक और देश में युवा पीढ़ी (जेन-जी) के आंदोलन के चलते तख्तापलट हो गया। ये देश है मेडागास्कर, जहां पानी की कमी को लेकर जेन-जी का विरोध प्रदर्शन क्रांति में बदल गया और मेडागास्कर के राष्ट्रपति एंड्री राजोलीना को देश छोड़कर भागना पड़ा। एंड्री राजोलीना के देश छोड़कर भागने के बाद आर्मी अफसर कर्नल माइकल रैंड्रियानरिना देश की सत्ता पर काबिज हो गए हैं। हालांकि कर्नल माइकल रैंड्रियानरिना एकमात्र सैनिक नहीं हैं, जो तख्तापलट के बाद देश की सत्ता पर काबिज हुए हैं, ये फेहरिस्त लंबी है। आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ चर्चित सैन्य नेताओं के बारे में जो बैरक से राष्ट्रपति भवन तक पहुंचे।
म्यांमार- मिन ऑन्ग ह्लेंग
म्यांमार की सेना में मिन ऑन्ग ह्लेंग कई तरक्की के बाद साल 2010 में जॉइंट चीफ ऑफ स्टाफ बने, जो म्यांमार की सेना का तीसरा सबसे बड़ा पद है। इसके एक साल बाद मिन ऑन्ग ह्लेंग कमांडर इन चीफ बने और अगला एक दशक सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने में बिताया। जुलाई 2021 में उनका रिटायरमेंट होना था, लेकिन फरवरी 2021 में ही मिन ऑन्ग ने म्यांमार में तख्तापलट कर सत्ता कब्जा ली और म्यांमार में सैन्य शासन स्थापित किया। म्यांमार की सेना की जल्द ही आम चुनाव कराने की योजना है।
युगांडा – ईदी अमीन
दुनिया के सबसे खूंखार तानाशाह में से एक यूगांडा के ईदी अमीन ने अपने सैन्य करियर की शुरुआत एक रसोइए के रूप में की थी। साल 1962 में युगांडा की ब्रिटेन से आजादी के बाद, राष्ट्रपति मिल्टन ओबोटे के मार्गदर्शन में वे सेना के कमांडर बने। जनवरी 1971 में, जब ओबोटे राष्ट्रमंडल शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए सिंगापुर में थे, तभी ईदी अमीन ने सैन्य तख्तापलट कर सत्ता हासिल की। तख्तापलट के बाद ओबोटे पड़ोसी देश तंजानिया भाग गए। युगांडावासियों ने शुरुआत में ईदी अमीन के सत्ता में आने का स्वागत किया, क्योंकि उन्होंने राजनीतिक कैदियों को रिहा करने और लोकतंत्र बहाल करने का वादा किया था। हालांकि जल्द ही ईदी अमीन का शासन हिंसा और मानवाधिकारों के हनन से ग्रस्त एक क्रूर तानाशाही शासन में तब्दील हो गया। अमीन को अप्रैल 1979 में तंजानियाई सेना और युगांडा के विद्रोहियों से बनी एक आक्रमणकारी सेना ने सत्ता से बेदखल कर दिया।
तुर्किए- केनान एवरेन
केनान एवरेन ने अपने सैन्य करियर की शुरुआत एक सैन्य अकादमी से एक अधिकारी के रूप में की, कई दशकों तक विभिन्न पदों पर काम करने के बाद वे जनरल के सर्वोच्च पद पर पहुंचे, जहां उन्होंने जनरल स्टाफ के प्रमुख के रूप में काम किया। साल 1980 में तुर्किए में वामपंथियों और दक्षिणपंथियों के बीच हिंसा हुई, जो महीनों तक चली। इस हिंसा के चलते तुर्किए गृहयुद्ध के कगार पर पहुंच गया था। ऐसे हालात में सितंबर 1980 में केनान एवरेन ने तख्तापलट कर सत्ता संभाली और देश में सैन्य शासन लागू कर दिया।
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सैन्य शासन में तुर्किए के संविधान को फिर से लिखा गया। सेना ने संसद भंग कर दी और एक राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के जरिए एवरेन ने शासन किया। नवंबर 1982 में नए संविधान को मंजूरी मिलने के बाद एवरेन ने औपचारिक रूप से तुर्किए के सातवें राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभाला, जिसके बाद सैन्य शासन समाप्त हो गया। साल 1989 तक केनान एवरेन राष्ट्रपति पद पर रहे। साल 2012 में तख्तापलट करने के लिए एवरेन के खिलाफ मुकदमा चलाया गया और बाद में उन्हें राज्य के विरुद्ध अपराध के दोष में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
घाना – जेरी रॉलिंग्स
जेरी रॉलिंग्स दो सैन्य तख्तापलटों के जरिए घाना की सत्ता में आए, पहला तख्तापलट उन्होंने जून 1979 में किया और फिर दूसरा दिसंबर 1981 में, बाद में वे एक लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित राष्ट्रपति बने। घाना वायु सेना में पायलट रहे रॉलिंग्स अपने पहले सफल तख्तापलट के लिए प्रसिद्ध हुए, जिसमें उन्होंने घाना के शासक का पद संभाला। साल 1981 में एक दूसरे तख्तापलट में, उन्होंने नागरिक सरकार को गिरा दिया और 1990 के दशक की शुरुआत तक राष्ट्रीय रक्षा परिषद की सैन्य तानाशाही की कमान संभाली। 1992 में नए संविधान के लागू होने के बाद वे लोकतांत्रिक रूप से राष्ट्रपति चुने गए। जनवरी 1993 से जनवरी 2001 तक उन्होंने दो बार चार-वर्षीय कार्यकालों को सफलतापूर्वक पूरा किया। उनके द्वारा घाना में किए गए आर्थिक सुधारों की तारीफ की जाती है तो दूसरी तरफ उनके शासन में हुए मानवाधिकारों के हनन, मनमाने ढंग से हिरासत में लिए गए लोगों और जबरन गायब कर दिए गए लोगों को लेकर आलोचना भी होती है।
चिली – ऑगस्टो पिनोशे
दक्षिण अमेरिकी देश चिली के पूर्व सैन्य शासक ऑगस्टो पिनोशे एक सैन्य अधिकारी थे, जिन्होंने सेना में कई उच्च पदों पर काम किया और अगस्त 1973 में चिली के राष्ट्रपति सल्वाडोर अलेंदे द्वारा उन्हें सेना का कमांडर-इन-चीफ नियुक्त किया गया। हालांकि कमांडर बनने के बाद अगले महीने ही पिनोशे ने लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित समाजवादी राष्ट्रपति अलेंदे की सरकार का तख्तापलट कर दिया। पिनोशे के नेतृत्व में एक खूनी सैन्य तख्तापलट किया गया, जिसमें चिली की सेना ने राष्ट्रपति भवन, ला मोनेडा को घेर लिया। जहां पकड़े जाने से पहले ही राष्ट्रपति अलेंदे ने आत्महत्या कर अपनी जान दे दी। इसके बाद पिनोशे के नेतृत्व में चिली में तानाशाही सरकार बनी। अपने 17 साल के शासन में पिनोशे पर चिली के लोगों के मानवाधिकारों का उल्लंघन करने और चरमपंथी तरीके से मुक्त बाजार आर्थिक नीतियों को लागू करने के आरोप लगे।



