BLN– 7 मई 2021 के सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित एक आदेश के कारण अब बिहार में पुलिस 7 वर्ष से कम की सजा वाले मामलों में अभियुक्त की सीधी गिरफ्तारी नहीं करेगी बल्कि परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लेते हुए अभियुक्त की गिरफ्तारी करने के बजाय आरोपित को पहले नोटिस भी दे सकती है, जिससे कि आरोपी को जमानत लेने का मौका मिल पाए।
सात वर्ष से कम की सजा वाले मामलों में गिरफ्तारी को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश आने के पश्चात बिहार पुलिस मुख्यालय द्वारा एक विस्तृत गाइडलाइन ज़ारी की गई है।
DGP संजीव कुमार सिंघल द्वारा जारी इस आदेश में कहा गया है कि दहेज से जुड़े केस और सात वर्ष से कम सजा वाले मामलों में गिरफ्तारी की बजाय पहले सीआरपीसी की धारा 41 के प्रावधानों के अंतर्गत गिरफ्तारी करनी है या नहीं इस विषय में पुलिस अधिकारी को संतुष्ट होना होगा, इसके साथ हीं कोर्ट के सामने गिरफ्तार आरोपी की पेशी के समय गिरफ्तारी का उपयुक्त कारण के साथ हीं अन्य साक्ष्य एवं सामग्री समर्पित करना अनिवार्य होगा।
इस संबंध में सभी जिला मुख्यालयों के संबंधित अधिकारियों को पत्र भेज दिया गया है। इस नए आदेश के अनुसार अब ऐसे मामलों में गिरफ्तारी के समय CRPC की धारा 41B, 41C, 41D, 45, 46, 50, 60 और 60A का अनुपालन अतिआवश्यक होगा।
सुप्रीम कोर्ट के नए आदेश का हवाला देते हुए DGP द्वारा निर्गत पत्र में बिहार के सभी पुलिस अधिकारियों को इन नए प्रावधानों के अनुपालन को सुनिश्चित कराने का आदेश दिया गया है।
DGP ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि पुलिस द्वारा बिना वारंट गिरफ्तार करने की शक्ति संबंधी प्रावधान धारा 41 दंड प्रक्रिया संहिता में अधिनियम 2008 एवं दंड प्रक्रिया संहिता अधिनियम 2010 के माध्यम से संशोधन हुए थे जो 1 और 2 नवंबर 2010 से प्रभावी हुए हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने 7 मई 2021 को पारित न्यायादेश में कुछ आदेश दिए हैं जो इस प्रकार से हैं।
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अरेस्टिंग में चेक लिस्ट का प्रयोग
धारा 498 A IPC तथा 7 वर्ष से कम कारावास के मामले में अभियुक्तों को सीधे गिरफ्तार करने के बजाय पहले धारा 41 दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के तहत गिरफ्तारी की आवश्यकता के संबंध में पुलिस अधिकारी संतुष्ट हो लेंगे। सभी पुलिस अधिकारी धारा 41 के प्रावधानों के अनुपालन में चेक लिस्ट प्रयोग करते हुए संतुष्ट होकर ही अभियुक्त की गिरफ्तारी करेंगे।
एसपी कर सकते हैं यह काम
तीसरा प्रावधान है कि धारा 41 के विभिन्न उक्त उपधारा के प्रावधानों के तहत पुलिस द्वारा अगर किसी अभियुक्त की गिरफ्तारी आवश्यक नहीं समझी जाए तो प्राथमिकी अंकित होने के 2 सप्ताह के भीतर संबंधित न्यायालय को ऐसे अभियुक्तों का विवरण भेज दें। दो सप्ताह की अवधि पुलिस अधीक्षक द्वारा बढ़ाई भी जा सकती है।
आदेश का पालन न हुआ तो…
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41ए के तहत उपस्थिति का नोटिस प्राथमिकी अंकित होने के 2 सप्ताह के भीतर तामील करा देना है, यह दो सप्ताह की अवधि पुलिस अधीक्षक द्वारा वाजिब कारण के साथ बढ़ाई जा सकती है। इन निर्देशों का पालन करने में असफल रहने वाले पुलिस अधिकारी विभागीय कार्यवाही के साथ ही साथ न्यायालय की अवमानना के दंड के भागी होंगे।
परिस्थितियों के आधार पर फैसला
डीजीपी ने कहा है कि वर्णित पांचों कारणों में से यदि एक भी कारण मौजूद होगा तो गिरफ्तारी न केवल उचित होगी बल्कि कानूनी रूप से भी अपरिहार्य होगा। जिन अभियुक्तों की गिरफ्तारी नहीं की गई उनके विवरण की समीक्षा प्रत्येक मासिक अपराध समीक्षा बैठक में पुलिस अधीक्षक द्वारा आवश्यक रूप से की जाएगी. चेक लिस्ट का संधारण एवं मूल्यांकन अलग अलग अभियुक्तों के लिए अलग-अलग होना है क्योंकि एक ही कांड में अलग अलग अभियुक्तों की परिस्थितियां तथा सामग्री अलग अलग हो सकती है।
अरेस्टिंग से पहले नोटिस भेजना होगा
आदेश के तहत यदि कोई व्यक्ति इन धाराओं में संज्ञेय अपराध किसी पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में करता है तो उसकी गिरफ्तारी बिना वारंट के की जा सकती है। भले ही ऐसे अपराध की सजा कितनी कम क्यों ना हो धारा 41 के प्रावधान दंड प्रक्रिया संहिता के अन्य प्रावधानों पर प्रभावी नहीं होते हैं। अनुसंधान के बाद जिन अभियुक्तों के विरुद्ध आरोप पत्र समर्पित करने का निर्णय लिया गया है पर उनकी गिरफ्तारी नहीं की गई है तो अनुसंधान बंद करने से पहले संबंधित न्यायालय में उपस्थित होने को लेकर 41 A के तहत नोटिस भेजा जाना न्यायोचित होगा।