Ajeeb Daastaans Movie Review in Hindi

अजीब दास्तान्स चार अलग-अलग कहानियों का एक गुलदस्ता है जिसमे फूलों के साथ कुछ कैक्टस भी है जो आपको शायद चुभ सकते हैं।

Ajeeb Daastaans Movie Review in Hindi

Ajeeb Daastaans Movie Review in Hindi – करण जौहर की धर्मा प्रोडक्सन के बैनर तले 16 अप्रैल को अजीब दास्तान्स Netflix पर रीलीज़ हो गई। अजीब दास्तान्स चार अलग-अलग कहानियों का एक गुलदस्ता है जिसमे फूलों के साथ कुछ कैक्टस भी है जो आपको शायद चुभ सकते हैं।

Ajeeb Daastaans Movie Review in Hindi

फिल्म- अजीब दास्तान्स/दास्तान

निर्देशक – शशांक खेतान, राज मेहता, नीरज घवन, कायोज ईरानी

मुख्य कलाकार – जयदीप अहलावत, फातिमा साना सेख, अरमान रलहन , अभिषेक बनर्जी, नुशरत भरूचा, कोंकणा सेन शर्मा , अदिति राव, सेफाली साह, मानव कौल।

अजीब दास्तान्स की 4 कहानियाँ चार अलग-अलग निर्देशकों द्वार फिल्मायी गई है। पहली कहानी का शीर्षक है “मजनूँ” जो शशांक खेतान द्वारा निर्देशित की गई है, और इस कहानी में मुख्य भूमिका में हैं, जयदीप अहलावत (मशहूर वेब सीरीज पाताल लोक का हाथीराम चौधरी) और फातिमा सना सेख।

इस कहानी का प्लॉट समलैंगिकता की आधारशिला पर रखा गया है ,एक अमीर बिजनस मैन का समलैंगिक बेटा “बबलू भैया” जिसकी शादी एक पौलिटीसियन की बेटी से कर दी जाती है, और समलैंगिक होने के कारण वह अपनी पत्नी को अपने अर्धांगिनी के रूप में अपना नहीं पाता है।  

दोनों के बीच पति-पत्नी जैसा कुछ है नहीं शिवाय लोक लाज और परिवार की मर्यादा का बोझ जिसे बबलू भैया अपनी पत्नी के मत्थे मढ़ देते है, बस इसलिए क्योंकि वह उनकी ब्याहता है। शरीर की जरूरत और भावनाओं के उफान के आगे भला लोक लाज की दीवारें आज के इस आधुनिक युग में कब  तक टिक पाती।

मजनूँ की कहानी में फिर एंट्री होती है बबलू भैया के ड्राईवर मिश्रा जी के बेटे की। यहाँ से लगता है की कहानी अब शुरू हुई है, लेकिन नहीं, आप इंतज़ार ही करते रह जाएँगे और मजनूँ की कहानी समाप्त भी हो चुकी होगी।

अजीब दास्तान्स की पहली कहानी मजनूँ से ही आपको यह समझ में आने लगेगा की फिल्म का नाम अजीब दास्तान्स क्यों है। फिल्म में जयदीप अहलावत के पास करने के लिए कुछ ज्यादा है नहीं, और जो करने के लिए है उसमें वे बहूत ज्यादा प्रभावित कर नहीं पाये।

अजीब दास्तान्स (Ajeeb Daastaans) की दूसरी कहानी है “खिलौना”। राज मेहता द्वारा निर्देशित खिलौना मे मुख्य भूमिका मे है अभिषेक बनर्जी और नुसरत भरूचा।

खिलौना निम्न मध्यम वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग के सपने, जरूरतें और जिंदगी के बीच के क्लैश से उपजी कहानी है। इस कहानी का मुख्य किरदार है है मीनल (नुसरत भरूचा ) जो एक काम वाली  बाई की भूमिका में हैं। मीनल अपनी छोटी बहन के साथ रहती है, वहीं अभिषेक बनर्जी एक प्रेस वाले धोबी की भूमिका में हैं।

खिलौना की कहानी कि बात करें तो मीनल जिस विनोद अग्रवाल के यहाँ काम करती है उस घर में किसी ने उनके नवजात शिशु को कुकर में डाल कर चूल्हे पर चढ़ा दिया। खिलौना कि आधी कहानी मीनल के जरूरतों के संघर्ष कि कहानी है और आधी उस नवजात कि हत्या के इन्वैस्टिगेशन कि कहानी है, दोनों हीं साथ साथ चल रहे होते हैं , कभी फ़्लैशबैक कभी वर्तमान, और इसी फ़्लैशबैक और वर्तमान के बीच फिल्म अजीब दास्तान्स के भविष्य का भी फैसला हो जाता है।

खिलौना को सस्पेन्स थ्रिलर बनाने की कोशिश में कुछ ऐसे वीभत्स दृश्य डाल दिये गए हैं जो आपको देखने में काफी तकलीफ दे सकते हैं।

किसी थर्ड ग्रेड नॉवेल से प्रभावित खिलौना कि कहानी आपको प्रभावित कर सके इतना माद्दा इसकी कहानी में है नहीं, और ऊपर से कम समय में ज्यादा डेलीवर करने का बोझ इसके कलाकारों पर अलग से डाल दिया गया है   

अब बात कर लेते हैं अजीब दास्तान्स (Ajeeb Daastaans) कि तीसरी कहानी कि जो है “गीली पुच्ची”। मशान जैसी फिल्में निर्देशित कर चुके नीरज घेवन द्वारा निर्देशित और कोंकणा सेन शर्मा( भारती ) और अदिति राव हैदरी (प्रिया) द्वारा अभिनीत इस फिल्म कि कहानी समलैंगिकों कि भावनाओं और जाति प्रथा के इर्द गिर्द बुनी गई है।

गीली पुच्ची अजीब दास्तान्स कि ऐसी पहली कहानी है जो थोड़ा कम अजीब है शायद इसीलिए यह आपको कुछ देर बांध कर रखने में कामयाब हो सकती है, इसके साथ हीं अगर आप कोंकणा सेन शर्मा के अभिनय के दीवाने हैं तब तो गीली पुच्ची को आप अवश्य सराहेंगे।

जैसा कि मैंने बताया कि फिल्म कि कहानी समलैंगिक भावनाओं को दर्शाने का प्रयास करती है , जाति प्रथा के तड़के के साथ। गीली पुच्ची में कोंकणा “भारती” के किरदार में हैं जो एक दलित है , वहीं अदिति राव एक ब्राह्मण बहू प्रिया कि भूमिका में हैं।

भारती को उसका पति छोड़ चुका है और वह एक निजी कंपनी मे काम कर रही होती है तभी कहानी मे एंट्री लेती है प्रिया जिसकी अभी नई नई शादी हुई है ,जो उसी कंपनी में डेटा ऑपरेटर के पोस्ट पर जॉइन करती है।  भारती को भी डेटा ऑपरेटर का पोस्ट चाहिए था, वह उस पोस्ट के लिए हर तरह से योग्य भी है लेकिन भारती का दलित होना भारती के इस पोस्ट पर पहुँचने के मार्ग का सबसे बड़ा रोड़ा है।

भारती और प्रिया दोनों एक हीं कंपनी में काम करने के कारण एक दूसरे के संपर्क मे आते हैं और दोनों अच्छे दोस्त बन जाते है। दोस्ती जब घनिष्टता में बदलती है तब दोनों के हीं अंदर के  समलैंगिक हॉरमोन एक दूसरे को अपनी ओर आकर्षित करते है, तभी दलित और ब्राह्मण का तड़का कहानी में डाला जाता है।

तड़के से कहानी का स्वाद बढ़ना चाहिए था लेकिन हुआ उल्टा , एक बार फिर जैसे ही आप कहानी से जुडने लगेंगे कि कहानी समाप्त। 2 घंटे 22 मिनट कि फिल्म में 4 अलग अलग कहानी दिखने का यही परिणाम होता है कि आप जब तक एक कहानी से कनैक्ट करने का प्रयास हीं कर रहे होंगे कि तब तक दूसरी कहानी शुरू हो जाएगी।

अजीब दास्तान्स कि अंतिम पेशकस है “अनकही”। निर्देशक कायोज ईरानी (बोमन ईरानी के बेटे) द्वारा निर्देशित इस फिल्म कि कहानी एक ऐसे परिवार कि कहानी है जिसमें एक ब्यस्त पति, अपने पति से असंतुष्ट पत्नी (सेफाली साह)  के अलावे एक छोटी बच्ची रहती है जो सुन नहीं सकती है।

अक्सर पति पत्नी कि लड़ाई होती रहती है। पत्नी को अपने पति से शिकायत है कि वह अपनी बच्ची को समय क्यों नहीं देता है ?  इन सब के बीच कहानी में एंट्री होती है मानव कौल जो कि एक बधिर फोटोग्राफर और मुक बधिरों कि भाषा के टीचर कि भूमिका में हैं।

बाँकी कि कहानी या तो आप समझ गए होंगे या फिल्म देख के जान जाएँगे। अनकही में अपने निर्देशन से कायोज ईरानी आपको प्रभावित कर सकते है, और अगर ऐसा हुआ तो उसमे अनकही के कलाकारों का योगदान भी बहोत ज्यादा होगा खासकर सेफाली साह और मानव कौल के अभिनय का।

कुल मिलाकर अजीब दास्तान्स चार अधूरी कहानियों कि दास्तान है, जैसा कि मैंने पहले हीं कहा कि जब तक आप एक कहानी से कनैक्ट करने कि कोशिश करेंगे तब तक आप पर दूसरी कहानी थोप दी जाएगी। हर कहानी का कलाकार जल्दबाज़ी मे दिखता है, इसी जल्दबाज़ी कि अधूरी दास्तान है धर्मा प्रॉडक्शन कि अजीब दास्तान्स।  

Ajeeb Daastaans Movie Review in Hindi– अजीब दास्तान की चारों कहानियों मे अगर कुछ समानता है तो वह है रिश्तों के उलझे हुए डोर और  उस उलझे हुए डोर को सुलझाने के अजीबोगरीब तरीके। करण जौहर प्रॉडक्शन कि फिल्मे देख कर हो सकता है कि आपको अपना स्ट्रेट होना भी अपराध लगने लगे। समलैंगिकों के अधिकारों कि बात करना एक बात है, और समलैंगिकता कि चासनी में कहानी को डुबो-डुबो कर परोसना दूसरी बात।

अजीब दास्तान्स देखें या नहीं देखें

अगर आपको अजीब दास्तान्स देखनी है तो जरूर देखें , लेकिन देखना शुरू करने से पहले उम्मीद और दिमाग दोनों को हीं खुद से अलग कर लें ,तब शायद संभव है की आप 2 घंटे 22 मिनट तक इस फिल्म को झेल सकें।   

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अजीब दास्तान की चारों कहानियों मे अगर कुछ समानता है तो वह है रिश्तों के उलझे हुए डोर और  उस उलझे हुए डोर को सुलझाने के अजीबोगरीब तरीके। करण जौहर प्रॉडक्शन कि फिल्मे देख कर हो सकता है कि आपको अपना स्ट्रेट होना भी अपराध लगने लगे। समलैंगिकों के अधिकारों कि बात करना एक बात है, और समलैंगिकता कि चासनी में कहानी को डुबो-डुबो कर परोसना दूसरी बात।

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