Home Dharm Apne Pitron ko Prasann kaise karen:पितरों के लिए किए जाने वाले पिण्ड...

Apne Pitron ko Prasann kaise karen:पितरों के लिए किए जाने वाले पिण्ड दान और श्राद्ध का महत्व।

Apne Pitron ko Prasann kaise karen

Apne Pitron ko Prasann kaise karen– पितरों के विषय में पुराणों में वर्णन है कि देव लोक की हीं तरह पितरों के भी लोक हैं जिसे पितृलोक कहते हैं। मृत्यु के पश्चात पापात्मा पितर नर्क में अपने कर्म का दंड पाते हैं तथा पुण्यात्मा पितर स्वर्ग में पुण्य फल भोगते हैं। पितरों को उनके कर्म फल भोगने के पश्चात जब तक उनका जन्म नहीं होता है पितर पितृलोक में निवास करते हैं।

पितरों की पूजा

हमारे शास्त्रों में अपने पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान, वस्त्र दान, अन्न दान तथा ब्राह्मण भोजन समय-समय पर करने का विधान है। प्रतिदिन आप नित्य पूजा के पश्चात एक अलग पात्र में दक्षिण मुख होकर पितरों के नाम से तर्पण करें। (जल, सफ़ेद फूल एवं काला तिल हो तो ठीक है अन्यथा सिर्फ जल से अपने सभी पितरों के नाम से तर्पण करें। दाहिने हाथ की हथेली से अंगूठे और तर्जनी के बीच से जल देते हुए तर्पण करें।

यदि ऐसा कर पाना प्रतिदिन संभव नहीं है तो हर महिने की अमावश्या को पितरों के लिए स्नान, दान करें, यदि संभव हो तो ब्राह्मण भोज कराएं यदि ब्राह्मण को भोजन कराना संभव नहीं हो पाए तब पितरों के नाम से कुछ भोजन सामग्री दान करें।

Apne Pitron ko Prasann kaise karen– यदि आप अमावश्या को भी अपने पितरों के लिए तर्पण दान इत्यादि न कर पाएँ तो अपने दादा, दादी, माता-पिता या अपने पूर्वजों के पुण्यतिथि को पिंडदान एवं तर्पण करें इसके साथ हीं ब्राह्मण को भोजन अवश्य कराएं तथा यथा शक्ति उनके निमित अन्न, वस्त्र, फल, मिष्ठान जो आपसे संभव हो दान अवश्य करें।

पितृपक्ष में पितरों की पूजा

वर्ष के आश्विन महिने के शुक्ल पक्ष की प्रथमा से अमावश्या तक की तिथि को पितृ पक्ष कहते हैं। यह पूरा पक्ष पितरों के श्राद्ध एवं तर्पण का है।

पितृ पक्ष में पितृ पूजन कैसे करें?

यदि संभव है तो प्रतिदिन पूरोहित को बुलाकर तर्पण करें। आपके माता-पिता एवं पूर्वजों का जिस तिथि को पुण्यतिथि पड़ रही है उस तिथि को पिंड दान, ब्राह्मण भोजन, एवं उनके निमित अन्न वस्त्र दान करें। यदि पूरे पितृ पक्ष में संभव न हो तर्पण करना तो उनके पुण्यतिथि के दिन अवश्य करें।

यहाँ पुण्यतिथि से तात्पर्य है कि किसी भी महिने के जिस भी तिथि को आपके पूर्वजों की पुण्यतिथि पड़ती है पितृ पक्ष में उसी तिथि पर उनका श्राद्ध करें। यदि किसी ब्यक्ति की मृत्यु वैसाख मास के कृष्ण या शुक्ल पक्ष की तिथि में हुआ है तब उनका श्राद्ध पितृ पक्ष के तृतीया तिथि को होगा।

तीर्थों में पितृ श्राद्ध

प्रायः आज के समय में तिर्थ करना भी घूमना एवं मनोरंजन बन कर रह गया है। तिर्थ करते हुए तिर्थ के नियमों का पालन करना चाहिए। जब भी आप तिर्थाटन पर जाएँ वहाँ अपने पितरों को न भूलें।

तीर्थों में नदि , तालाब जहां भी आप स्नान कर रहे हों (धार्मिक स्थानों पर) पितरों के नाम से तर्पण करें। कुछ तीर्थों में पिंड देने का विशेष महत्व है जैसे बद्रीनाथ, रामेश्वरम, पुष्कर इत्यादि अनेक तिर्थ हैं जहां पितरों को पिंड दिया जाता है वहाँ भी उनके निमित दान करें।

गया श्राद्ध

Apne Pitron ko Prasann kaise karen-बिहार के गया जी में फाल्गु नदि और विष्णु पड़ मंदिर है जहां पितरों का श्राद्ध होता है। जिनके माता पिता दोनो का परलोक गमन हो गया है वे हीं वे हीं गया में अपने पितरों के निमित श्राद्ध, दान इत्यादि करें एवं उसके पश्चात घर आकार ब्राह्मण भोजन और सगे संबंधियों को भोजन कराएं।

पितरों के श्राद्ध इत्यादि से बहुत लोग अनभिज्ञ हैं और कई बार तो जान कर भी उसकी महत्ता को नहीं समझते हैं। हमारे ऊपर हमारे माता, पिता और पूर्वजों का ऋण होता है। उनके जीवित रहते हम उनके लिए जो भी करते हैं उसके बाद भी उनकी मृत्यु होने पर पितर के रूप में उनके प्रति हमारा कर्तव्य बना रहता है।

पितरों के श्राद्ध एवं पिण्ड दान का महत्व    

Apne Pitron ko Prasann kaise karen– पितृ पूजा, तर्पण, श्राद्ध आदि कर्म करने से हमारे पितर संतुष्ट रहते हैं, उन्हे किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता है। ऐसी मान्यता है कि जो भी वस्तु हम उनके निमित (उनके नाम से) दान करते हैं, पिण्ड देते हैं, ब्राह्मण भोजन कराते हैं वे वस्तुएं उन्हे प्राप्त होती हैं। वे संतुष्ट होकर आपको आशीष देते हैं जिससे आपके परिवार की संवृद्धि होती है, आपके घर में सुख और शांति रहती है तथा ऐसा करने से आप भी अपने कर्तव्य से संतुष्ट होते हैं।

पितरों का श्राद्ध, तर्पण, दान इत्यादि नहीं करने पर किन्ही के पितर प्रेत इत्यादि के रूप मे होते हैं तब वे भूख, प्यास से तड़पते हैं उन्हे भोजन, वस्त्र इत्यादि प्राप्त नहीं होते हैं और वे अपनी संतान से दूखी होते हैं। पितरों का श्राद्ध इत्यादि करने से वे संतुष्ट होकर अपने संतान को आशीर्वाद देते हैं।

इस आर्टिक्ल को पढ़ कर आप कतिपय यह न समझें कि यह बहुत लंबी प्रक्रिया है और इसमें बहुत धन का खर्च होता है। जिनके पास जितना है उतना हीं करें कम से कम जल का तर्पण कर अपनी  क्षमतानुसार दान इत्यादि करें। जो भी करें प्रेम, श्रद्धा एवं आदर से खुश और विनम्र हो कर करें। बिना श्रद्धा के एवं अहंकार के साथ किया गया कोई कर्म सफल नहीं होता है।

हरि प्रणाम।

      

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version