Bhramri pranayam in hindi- भ्रामरी का संबंध भ्रमर से है जिसका अर्थ होता है भौंरा। इस अभ्यास को भ्रामरी इसलिए कहा जाता है कि इसमें भौंरेके गुंजन के समान ध्वनि उत्पन्न कि जाती है।
भ्रामरी प्राणायाम कैसे करें (Bhramari Pranayam kaise karen)
ध्यान के किसी सुविधाजनक आसान मेन बैठ जाएँ। मेरुदंड सीधा (रीढ़ को सीधा रखें) , सिर सीधा और दोनों हाथ घुटनों पर ध्यान की मुद्रा मे रहें ।
इस अभ्यास के लिए पद्मासन या सिद्धासन आसन उत्तम है। आंखे बंद कर ले और कुछ समय के लिए पूरे शरीर को ढीला छोर दें। पूरे अभयास के दौरान होठों को हल्के से बंद रखें और दातों की पंक्तियों को एक दूसरे से थोरा अलग रखें। इससे मस्तिष्क में ध्वनि के प्रति संवेदनशीलता बढ़ती है और मस्तिष्क ज्यादा सजग रहता है, ऐसा करते समय यह याद रखें की जबड़े तनाव रहित रहे ।
अपने दोनों हाथों के कोहनियों को मोड़कर अपने हाथों को कानों के निकट लें आयें । तर्जनी या मध्यमा उँगलियों से कानों को बंद कर लें। उँगलियों को बिना अंदर घुसाए कानों के पल्लों को दबाया जा सकता है।
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अपने ध्यान को सिर के बीचों-बीच ले आएं और शरीर को एकदम स्थिर रखें। नाक से सांस लें और भौरे की तरह गुंजन की हल्की आवाज उत्पन्न करते हुए नियंत्रित ढंग से धीरे-धीरे सांस छोड़े ।
इस तरह एक चक्र पूरा हुआ। रेचक पूरा हो जाने पर पुनः गहरा पूरक करें और क्रिया की पुनरावृत्ति करें, इसी क्रम में 3 चक्र अभ्यास करें । पूरक (सांस अंदर लेना ) रेचक (सांस बाहर छोड़ना)।
कितनी देर तक अभ्यास करें
प्रारम्भ में 5 से 10 चक्र पर्याप्त है। धीरे-धीरे समय बढ़ाते हुए 10 से 15 मिनट तक अभ्यास करें। बहुत अधिक मानसिक तनाव या चिंता होने पर या उपचारात्मक उपयोग हेतु भ्रामरी प्राणायाम का अभ्यास 30 मिनट तक करें ।
भ्रामरी प्राणायाम करने का सही समय देर रात्रि या सूर्योदय के समय है , और यदि शांत परिवेश उपलब्ध हो, तो मानसिक तनाव से मुक्ति के लिए किसी भी समय भ्रामरी का अभ्यास किया ज सकता है ।
भ्रामरी प्राणायाम करते समय किन बातों का रखें विशेष ख्याल
भ्रामरी प्राणायाम लेट कर कभी नहीं करना चाहिए। जिन्हे कान का संक्रमण हो , उन्हे संक्रमण से मुक्त होने के बाद हीं भ्रामरी प्राणायाम करना चाहिए।
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भ्रामरी प्राणायाम के लाभ (Benifits of bhramri Pranayam)
भ्रामरी प्राणायाम मानसिक परेशानी और तनाव से मुक्ति दिलाता है, जिससे क्रोध, चिंता और अनिद्रा भी दूर होती है, साथ हीं रक्तचाप में कमी आती है । यह वाणी को सुधारकर सशक्त बनाता है और गले के रोगों को दूर करता है ।
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