अधिवक्ता का बेटा/बेटी वकील बने या चिकित्सक का बेटा/बेटी डॉक्टर बने या पत्रकार का बेटा/बेटी मीडियाकर्मी बने- इसे ‘परिवारवाद’ नहीं कहा जाता है। वजह यह कि कोई वकील, डॉक्टर या मीडियाकर्मी अपनी पढ़ाई या काबिलियत से बनता है। ऐसे कई पेशे हैं। लेकिन, राजनीति कोई पेशा नहीं। देश-क्षेत्र-समाज की सेवा है। और, यहां शिक्षा की अनिवार्यता नहीं है। निरक्षर भी मुख्यमंत्री-प्रधानमंत्री बन सकते हैं। इसलिए, जब-जब कोई राजनेता अपने परिजन या उत्तराधिकारी को आगे करता है- परिवारवाद की बात चल निकलती है। बिहार विधानसभा चुनाव में भी यह मुद्दा सामने आया है। कहीं राजनेता पति ने पत्नी को लांच किया है, कहीं राजनीतिक विरासत में बेटा/बेटी/बहू/दामाद/भतीजे/भांजे को आगे किया गया है।



