प्रीति अब नहीं रही, समुचित इलाज़ के आभाव में प्रीति ने दुनिया को कहा अलविदा।

आखिरकार गरीबी एक बार फिर मौत के सामने हार हीं गई हमेशा की तरह। आप में से ज्यादातर लोगों को यह पता भी नहीं होगा की प्रीति कौन थी? क्योंकि वह न तो कोई लोकप्रिय गायिका थी, न हीं कोई मशहूर हस्ति।

इलाज के आभाव में प्रीति की मौत

BLN:जी हां प्रीति अब नहीं रही। आखिरकार गरीबी एक बार फिर मौत के सामने हार हीं गई हमेशा की तरह। आप में से ज्यादातर लोगों को यह पता भी नहीं होगा की प्रीति कौन थी? क्योंकि वह न तो कोई लोकप्रिय गायिका थी, न हीं कोई मशहूर हस्ति।

वह आपमें से या हममें से भी एक नहीं थी क्योंकि अगर होती तो आज उसका दिल अपने 8 माह के बेटे के लिए धड़क रहा होता, उसके वक्ष की धमनियों से उस गर्म दूध का प्रवाह हो रहा होता जो उसकी संतान के लिए अमृत के समान था।

प्रीति उस भारत की बेटी थी, बहु थी, विधवा थी और माँ थी जिस भारत के कल्याण के लिए सरकारें अनवरत कार्य करती रहती हैं, उनके लिए नित नई योजनायें बनाती है, और जिनके कमजोर कंधों पर भारत को एक लोकतांत्रिक राष्ट्र बनाये रखने की जिम्मेदारी सबसे अधिक है।

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मुझे उम्मीद है कि आप समझ हीं गए होंगे कि मैं किस भारत की बात कर रहा हूँ , यदि अब भी आपमें से कोई नहीं समझ पाया हो तो उनके लिए मैं बता दूं कि मैं उस भारत और वहां रहने वाले लोगों के विषय में बात कर रहा हूँ जिसके कारण आज भी बाहरी लोगों के लिए भारत एक तीसरी दुनिया है और यहां रहने वाले लोग तीसरी दुनिया के लोग हैं।

मैं बात कर रहा हूँ उन लोगों की जिनके लिए लक्जरी या ऐशो आराम का मतलब नई गाड़ी , एयर कंडीशनर ,LED TV या I-Phone नहीं है बल्कि रोजमर्रा की बुनियादी जरूरतें, दो जून की रोटी , औसत दर्जे के इलाज की सुविधा हीं उनके लिए लक्जरी जीवन का पर्याय है।

इस भारत में रहने वाले लोग जाति और वर्ग के बंधन से बिल्कुल मुक्त हैं, क्योंकि प्रीति भी इसी भारत में रहती थी एक कथित उच्च वर्ग में जन्म लेने के बावजूद।

बिहार के मुंगेर जिला के अंतर्गत टेटियाबंबर प्रखण्ड के बरडीहा गाँव की 20 वर्षीय प्रीति अपने पति की अकस्मात एक रोड एक्सीडेंट में मृत्यु के 14वें दिन रसोई गैस के कारण एक हादसे का शिकार हो गई उस हादसे के कारण उसके कमर के नीचे का हिस्सा बुरी तरह से झुलस गया था। यह घटना 11 नवम्बर के आस पास की थी।

पति गुड़गावँ में मजदूरी करता था , ससुर का देहांत 5 वर्ष पहले हीं हो चुका था परिवार में अब बूढ़ी सास , एक छोटा देवर और प्रीति का एक 8 माह का बच्चा लक्ष्य हीं बच गए थे।

परिवार ने अपने बूते 2 महीने तक प्रीति का ईलाज कराया उसके बाद जब परिवार की जमा पूंजी  समाप्त हो गई तो प्रीति का इलाज भी रुक गया।

मेरी जानकारी में यह मामला 22 जनवरी 2022 के आस -पास आया। मैन अपनी तरफ से यह सूचना मुंगेर के वर्तमान DM नवीन कुमार को व्हाट्सअप द्वारा दे दी इसके साथ हीं उस क्षेत्र के एक स्वघोषित समाजसेवी और हाल हीं के विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार से भी मैंने प्रीति के समुचित इलाज के लिए सहायता मांगी लेकिन उन महाशय को प्रीति में समाज नहीं दिखा शायद इसलिए उन्होंने सेवा करने में भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।

हांलांकि मुंगेर DM नवीन कुमार ने इस मामले को गंभीरतापूर्वक लिया और उन्होंने स्थानीय स्तर पर अनुमंडल स्थित PHC से डॉक्टरों का एक दल प्रीति के घर पर भेजा। डॉक्टरों ने प्रीति का इलाज भी किया, लेकिन यह प्रशासनिक प्रयास इतना काफी नहीं था कि प्रीति की जान बच पाती।

हमारे देश में सरकारी मदद अकाल पीड़ितों को सूखे और अकाल में राहत के रूप में फसल के लिए बीज उपलब्ध कराने के समान हीं होता है, क्योंकि हमारे यहां सरकारी मदद को सेवा तो समझा जाता है धर्म नहीं।

लेकिन इसके बावजूद मुंगेर के DM नवीन कुमार प्रशंसा के पात्र हैं क्योंकि उन्होंने जितना किया शायद उनकी कुर्सी पर बैठे अन्य अधिकारी इतना भी नहीं करते। मुंगेर DM को मेरी ओर से और निःसंदेह प्रीति की ब्रम्हलीन आत्मा की तरफ से भी धन्यवाद।

प्रीति अब हमारे बीच नहीं रही। शायद आप सोच रहे होंगे की इसमे नई बात क्या है? इलाज के आभाव में तो लोग मरते हीं हैं। सरकार किस -किस का इलाज करवाये? आप बिल्कुल ठीक हीं सोच रहे है, अल्पायु में एक 8 महीने के बच्चे को अकेला छोड़कर एक माँ उचित इलाज के आभाव में अगर मौत की आगोश में समा जाए तो इसमें कौन सा पहाड़ टूट गया?

ज़रा इस मासूम की आंखों में आंखें डालकर इसे भी यही बात समझा दीजिये की ईलाज के आभाव में तो लोग मरते हीं हैं, तुम्हारी माँ भी मर गई तो क्या हो गया?

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हो सकता है कि जीडीपी के बढ़ते आंकड़ो से हम तकनीकी रूप से विकासशील राष्ट्र से विकसित राष्ट्र में तो परिणत हो जाएं लेकिन अगर ऐसे हीं किसी लक्ष्य की माँ प्रीति इलाज़ के आभाव में दम तोड़ती रही तो हम मानवीय मूल्यों के आधार पर तीसरी दुनिया के लोग और हमारा देश तीसरी दुनिया के रूप में हीं जाना जाएगा।

यदि भविष्य में कभी भी ऐसी किसी भी प्रीति की मृत्यु उचित इलाज़ के आभाव में होगी और इतिहास में उस मौत की ज़िम्मेदारी अगर तय की जाएगी तो तो उस मौत के लिए सरकार के साथ हीं हम और आप भी अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त नहीं हो पाएंगे।

समुचित इलाज के आभाव में दम तोड़ने वाली सभी प्रीतियों को मेरी ओर से श्रद्धांजलि।

अनुराग मधुर

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