Kapalbhati ke labh:- जानिए कपालभाति कैसे करते हैं और क्या हैं कपालभाति करने के लाभ

कपालभाति संस्कृत के शब्द कपाल और भाति से मिलकर बना है, जिसमें कपाल का अर्थ होता है ललाट और भाति का अर्थ होता है प्रकाश , भाति का एक दूसरा अर्थ बोध या ज्ञान भी होता है, अतः कपालभाति वह अभ्यास है जो मस्तिष्क के अग्र भाग में प्रकाश या स्पष्टता लाता है । इस अभ्यास का दूसरा नाम कपालशोधन है। जहां शोधन का अर्थ शुद्ध करना है

Kapalbhati ke labh

Kapalbhati ke labh –  कपालभाति प्राणायाम मानसिक कार्यों के लिए मन को ऊर्जा प्रदान करता है। निद्रा को दूर भगाने और मन को ध्यान के अभ्यास के लिए तैयार करने के लिए इसका अभ्यास किया जाता है।

कपालभाति भस्त्रिका प्राणायाम कि तरह हीं फेफड़े को स्वछ करने कि क्षमता रखता है इसलिए यह प्राणायाम दमा, ब्रोंकाएटिस और यक्ष्मा से पीड़ित ब्यक्तियों के लिए एक उत्तम अभ्यास है।

कुछ महीनों की सही तैयारी के बाद प्रसव के समय स्त्रियों के लिए यह एक प्रभावी अभ्यास हो सकता है। यह तंत्रिका तंत्र में संतुलन लाता है और उसे मजबूत बनाता है, इसके साथ हीं पाचन तंत्र के अंगों को भी मजबूत बनाता है।

कपालभाति का अर्थ

कपालभाति संस्कृत के शब्द कपाल और भाति से मिलकर बना है, जिसमें कपाल का अर्थ होता है ललाट और भाति का अर्थ होता है प्रकाश , भाति का एक दूसरा अर्थ बोध या ज्ञान भी होता है, अतः कपालभाति वह अभ्यास है जो मस्तिष्क के अग्र भाग में प्रकाश या स्पष्टता लाता है । इस अभ्यास का दूसरा नाम कपालशोधन है। जहां शोधन का अर्थ शुद्ध करना है ।

प्राणायाम क्या होता है,प्राणायाम के कितने प्रकार हैं और क्या है प्राणायाम करने की सही विधि, जानने के लिए यहाँ क्लिक करें। 

कपालभाति प्राणायाम कैसे करें  (kapaalbhati kaise Karen in Hindi)

आराम से ध्यान कि मुद्रा में पद्मासन या सिद्धासन के आसन में बैठ जाएँ , सिर, सर और मेरुदंड को सीधा रखते हुए अपने हाथों को घुटने पर रख लें । आँख बंद कर पूरे शरीर को ढीला छोर दें ।

पेट को बाहर कि ओर फैलाते हुए नाक के दोनों छिद्र से सांस लें और फिर पेट को जोड़ लगाकर अंदर कि ओर खीचते हुए सांस बाहर छोड़े , जरूरत से ज्यादा जोड़ नहीं लगाएँ ।

अगली बार सांस, पेट को बिना प्रयास के फैलाते हुए लें। पूरक सहज होना चाहिए उसमें किसी भी प्रकार का प्रयास नहीं लगना चाहिए। प्रारम्भ में 10 बार पूरक और रेचक करें और इस क्रम में प्रत्येक सांस लेने और छोड़ने कि गिनती मानसिक रूप से करें।    पूरक (सांस अंदर लेना) रेचक (सांस बाहर छोड़ना)

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10 बार तेजी से सांस लेने और छोड़ने के बाद गहरा सांस लें और छोड़े, इस प्रकार से कपालभाति का एक चक्र पूरा हो गया। 3 से 5 चक्र का अभ्यास करें , अभ्यास पूरा हो जाने पर अपने ध्यान को ललाट के मध्य भाग में केन्द्रित करें और शांति और शून्य का अनुभव करें।

कपालभाति करते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि गहरी सांस पेट से लें वक्ष से नहीं। जैसे-जैसे पेट कि पेशियाँ मजबूत होती जाएँ श्वास और प्रश्वास कि संख्या को 10 से बढ़ाकर 20 तक ले जाया जा सकता है।

कपालभाति प्राणायाम करने का सही समय क्या है ?

इसका अभ्यास दिन में किसी भी समय खाली पेट या भोजन के 3 से 4 घंटे के बाद किया जा सकता है।

कपालभाति प्राणायाम करते समय किन बातों का रखे ध्यान ?

यदि दर्द का अनुभव हो या चक्कर आने लगे तो अभ्यास बंद कर दें और शांत होकर बैठ जाएँ । जब दर्द समाप्त हो जाए तब अधिक सजगता के साथ और कम ज़ोर लगाकर अभ्यास पुनः आरंभ करें।

हृदय रोग, उच्च रक्तचाप , चक्कर आना, मिर्गी, दौरे पड़ना, हर्निया या गैस्ट्रिक् अल्सर से पीड़ित ब्यक्तियों के लिए यह अभ्यास वर्जित है।