बिहार हो या दिल्ली या देश का कोई अन्य राज्य वीआईपी संस्कृति इस कदर हमारे देश के नेताओं और अधिकारियों पर हावी रहता है, कि यदि उसके कारण किसी ब्यक्ति कि जान भी चली जाए तो यह उनकी नज़र में कोई बड़ी बात नहीं है।
ताज़ा मामला है पटना एनएमसीएच का जहां लखीसराय के रहने वाले कोरोना संक्रमित 60 वर्षीय विनोद सिंह जो की एक अवकाशप्राप्त फौजी भी थे ,उन्हे उनके परिजन गंभीर अवस्था में कई अस्पतालों का चक्कर काटने के बाद पटना के एनएमसीएच अस्पताल ले कर पहुंचे।
अब इसे मृतक विनोद सिंह का दुर्भाग्य ही कहा जाये की संयोग से उसी समय सूबे के स्वास्थ्य मंत्री भी ब्यवस्था और हालत का जायजा लेने एनएमसीएच आने वाले थे, फिर क्या था, अब आम आदमी मरे या जीये अस्पताल कर्मचारीयों को तो स्वास्थ्य मंत्री का स्वागत करना था, उनके आव-भगत कि तैयारी करनी थी।
मृतक विनोद सिंह के पुत्र अभियन्यू ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि उन्होने अस्पताल प्रशाशन से बहोत गुहार लगाई की इन्हे भर्ती कर लिया जाये लेकिन अस्पताल प्रशाशन ने यह कहते हुए मृतक (उस समय मरीज,लेकिन अब मृतक) के परिजनों को माना कर दिया कि अस्पताल में स्वास्थ्य मंत्री का दौरा होने वाला है , उनके जाने के बाद हीं हम मरीज को एड्मिट कर सकते हैं।
इस तरह इस भीषण गर्मी में एक 60 वर्षीय रिटायर्ड फौजी की जान एम्बुलेंस के अंदर इलाज़ के इंतज़ार मे चली गई।
दोस्तों संभव है की मृतक अस्पताल में भर्ती होने के बाद भी बच नहीं पाते , लेकिन जिस कारण से उन्हे समय पर अस्पताल में भर्ती नहीं किया जा सका, क्या वह कारण वास्तव में इतना बड़ा था कि जिसके कारण एक ब्यक्ति को इलाज़ के इंतज़ार में Ambulance मे ही अपनी अंतिम साँसे लेनी पड़े ।
इस घटना से मालूम पड़ता है की कल एनएमसीएच के बाहर खड़े उस Ambulance में एक नहीं बल्कि दो जानें गईं, एक तो रिटायर्ड फौजी विनोद सिंह की और उनके साथ हीं जो लोग भी इस घटना के लिए जिम्मेदार हैं, उनलोगों की संवेदना ने भी उसी Ambulance में अपना दम तोड़ दिया। मेरी तरफ से दोनों को श्रद्धांजलि ।
इस पूरे मामले पर जब पत्रकारों ने स्वास्थ्य मंत्री से सवाल पूछा तो मंत्री महोदय ने कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया और वे अस्पताल की ब्यवस्था और वहाँ मरीजों को मिल रही सुख-सुविधाओं से बहुत ही संतुष्ट दिखे।