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मुंगेर एसपी लिपि सिंह को मिला क्लीन चिट , लेकिन क्या मुंगेर की जनता उन्हे कभी कर सकेगी माफ ?

BLN– 26 अक्टूबर , दुर्गा पूजा में विसर्जन की मध्य रात्रि मुंगेर शहर मे जो कुछ हुआ वह बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश में चर्चा का विषय बना , और उस चर्चा के केंद्र में थीं मुंगेर की पुलिस कप्तान लिपि सिंह । अब जो खबर आ रही है उसके मुताबिक मुंगेर के चुनाव प्रेक्षक की ओर से चुनाव आयोग को पूरे घटनाक्रम पर जो रिपोर्ट भेजी गई है, उस रिपोर्ट के अनुसार दुर्गा पूजा विसर्जन की रात्री मुंगेर में जो कुछ हुआ उसके लिए पूरी तरह से असामाजिक तत्व जिम्मेदार थे , मुंगेर प्रशासन ने बस वही किया जो कानून ब्यवस्था संभालने के लिए प्रशासन को करना चाहिए था ।

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मीडिया में चल रही खबरों के मुताबिक उस रिपोर्ट मे इस बात का भी जिक्र है कि 22 वर्षीय युवक अनुराग पोद्दार की मौत पुलिस की गोली से नहीं बल्कि देसी कट्टे से निकली गोली से हुई है , और शायद वह गोली मृतक को बिल्कुल करीब से सटा के मारा गया था । यहाँ आपको यह बताते चलें की चुकि बिहार में अभी चुनाव है ऐसे समय में बिहार के प्रशासन सम्बन्धी सभी निर्णय चुनाव आयोग के द्वारा ही लिए जाते हैं  , यानि की चुनाव आयोग को यदि लगता है कि मुंगेर प्रशासन और मुंगेर एसपी ने कुछ गलत नहीं किया है तो इसमे फिलहाल सरकार भी कुछ नहीं कर सकती है।

अब यह तो बात थी चुनाव आयोग के प्रतिनिधि के रिपोर्ट के नज़रिये से विसर्जन में क्या हुआ उसकी , लेकिन एक और नजरिया है जो कि है मुंगेर कि जनता का जिसके अनुसार उस 22 वर्षीय युवक अनुराग पोद्दार की क्या गलती थी जिसकी मौत हुई , उस शोकाकुल परिवार की क्या गलती है जिसके आँसू पोछने न ही प्रशासन की ओर से कोई आया और न ही किसी बड़े जनप्रतिनिधि  ने ही मृतक के चौखट पर जाकर सांत्वना के दो शब्द कहे ।

अंदर ही अंदर रिपोर्ट बनी और चुनाव आयोग के पास चली भी गई , जनता में इतना आक्रोश था , जनता के आक्रोश को भी अगर दो पल के लिए भूल जाएँ तो कम से कम उस शोकसंतृप्त परिवार को तो यह जानने का हक होना चाहिए की आखिर उसके बेटे के साथ हुआ क्या ? अगर अनुराग पोद्दार की मौत पुलिस की गोली से नहीं हुई थी ,गोली असामाजिक तत्वों द्वारा चलायी गई थी ,तो इसकी जानकारी प्रशासन उचित तथ्यों के साथ मुंगेर की जनता के सामने रख देती , और मृतक के परिवार को सांत्वना के दो शब्द कह देती तो शायद ना ही यह मामला इतना तूल पकड़ता और ना ही मुंगेर एसपी की तूलना जनरल डायर से की जाती ।

इस पूरे प्रकरण में एक और बात सामने आ रही है की दुर्गा पूजा समितियों और प्रशासन के बीच विसर्जन की तिथि को लेकर पहले से ही कुछ मतभेद थे लेकिन अंत मे दोनों ही पक्षों के बीच 26 तारीख को लेकर सामंजस्य बन गया था । सामंजस्य स्थापित होने के बावजूद भी प्रशासन की ओर से विसर्जन को लेकर जल्दबाज़ी की जा रही थी , जैसा की कई मीडिया रीपोर्ट्स में बताया भी गया है की घटना वाली रात भी पूजा समिति और प्रशासन के बीच बहस इसी जल्दबाज़ी के कारण ही आरंभ हुआ था , और इस जल्दबाज़ी के लिए प्रशासन को पूर्ण रूप से दोषी भी नहीं ठहराया जा सकता है , क्योकि 28 को चुनाव होने थे और प्रशासन को उसकी भी तैयारी करनी थी ।

सवाल तो चुनाव आयोग से पूछना चाहिए की त्योहारों के बीच चुनावों की तारीख को क्या टाला नहीं जा सकता था ? प्रदेश की जनता की आस्था और परंपरा इन त्योहारों से जुड़ी रहती है , चुकी चुनाव है इसलिए क्या जनता को अपनी आस्था ,परंपरा त्योहार सबकुछ लोकतन्त्र के महापर्व मे समाहित कर देना चाहिए , और सबसे बड़ा सवाल कि लोकतन्त्र जनता के लिए है? जनता से है ? या जनता लोकतन्त्र की वेदी पर बलि चढ़ने के लिए है ?

इस पूरे मामले में अगर हम यह मान भी लेते हैं कि अनुराग पोद्दार कि मौत प्रशासन के द्वारा चलायी हुई गोली से नहीं हुई फिर भी इस पूरे घटनाक्रम मे मुंगेर प्रशासन की संवेदनहीनता और उसके साथ हीं संवादहीनता भी स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है । संवेदन शून्य पुलिस या प्रशासन से हम कभी भी लोककल्याणकारी सरकार, ब्यवस्था या सभ्य समाज के निर्माण कि कल्पना नहीं कर सकते हैं ।

आज आवश्यकता है की मुंगेर प्रशासन मुंगेर की जनता से प्रत्यक्ष रूप से संवाद स्थापित करे जिससे कि एक बार फिर से मुंगेर की जनता का अपने प्रशासन पर भरोसा कायम हो सके, जो की फिलहाल टूट रहा है ।

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