बचा लीजिये प्रीति की जान।

save priti

BLN: मानवता और इंसानियत को शर्मसार होने से बचा लीजिये। बचा लीजिये मुंगेर जिला के टेटिया बम्बर प्रखंड के अंतर्गत बरडीहा गांव की अधजली 20 वर्षीय प्रीति कुमारी को।
प्रीति के साथ जो हुआ उसे जानकर शायद आप भी यही सोचेंगे कि अगर किस्मत और भाग्य जैसी कोई चीज होती है तो प्रीति इतनी बदकिस्मत और अभागी क्यों है?

कुछ 2 महीने पहले तक 20 वर्षीय प्रीति कुमारी भी एक आम ग्रामीण महिला हीं थी। पति गुरुग्राम (हरियाणा) में मजदूरी करता था और प्रीति यहां गांव में अपनी बूढ़ी सास, एक देवर और अपने 8 महीने के दूधमुंहे बच्चे लक्ष्य के साथ गुज़र-बसर कर रही थी।

priti tetiyabamber

लेकिन कहते हैं ना की वक्त अगर पलट जाए तो फिर उससे बड़ा क्रूर और निर्दयी दूसरा कोई नहीं। यही हुआ प्रीति के साथ भी। वक्त ने ऐसी करवट बदली की 14 दिन के अंदर एक सामान्य और खुशहाल परिवार को दर्द और निराशा के चादर ने पुरी तरह से ढक लिया।


गुड़गांव में एक सड़क हादसे में प्रीति के पति और घर में इकलौते कमाने वाले शख्स की मौत हो गई और ठीक अपने पति की मौत के चौदहवें दिन पहले से हीं आहत और बेसुध प्रीति खाना बनाते समय गैस चूल्हे की बेरहम लपटों की शिकार हो गई।अब चार लोगों के परिवार में अधजली और दर्द से तड़पती प्रीति के अलावे उसका एक 8 महीने का बच्चा लक्ष्य, एक बूढ़ी सास और देवर बचे हैं।

इस हादसे में प्रीति का शरीर बुरी तरह जल गया। परिवार वालों ने अपनी सभी जमा पूंजी और पुश्तैनी 15 कट्ठा जमीन गिरवी रखकर यथासंभव प्रीति का इलाज करवाया। जब पैसे खत्म हो गए तो प्रीति का इलाज भी रुक गया।
सरकारी अस्पताल में इलाज करवाना भी अब इस परिवार के बूते से बाहर है क्योंकि वहां भी कई दवाइयों का इंतज़ाम खुद हीं करना पड़ता है और जहां खाने के भी लाले पड़े हुए हैं वहां भला दवाइयों का इंतज़ाम कैसे हो?

अब आलम यह है कि ज़ख़्म नासूर बन गया है, घाव में कीड़े लगने लगे हैं। प्रीति दर्द से चीखती रहती है और खुद को बचाने की गुहार लगाती रहती है।

मैं जानता हूँ यह सब देखना और सुनना दोनो हीं बहुत ज्यादा तकलीफदेय है। एक बार में यह विश्वास कर पाना भी आसान नहीं है कि पैसे के आभाव में क्या कोई ऐसी नारकीय मौत मरने के लिए मजबूर हो सकता है वह भी आज के भारत में।

जब देश आजादी के 73वें गणतंत्र का उत्सव मना रहा होगा, राजपथ पर देश की सांस्कृतिक भव्यता और सामरिक शक्ति का प्रदर्शन किया जा रहा होगा तो कहीं इसी देश के किसी कोने में एक प्रीति इलाज के आभाव में अपना दम तोड़ रही होगी।

हमें कहाँ पहुंचना है यह तो शायद मुझे पता नहीं लेकिन पैसे के आभाव में कोई इस तरह धीरे-धीरे प्रतिदिन मौत की आगोश में समाता चला जाये और हम मूकदर्शक बन कर देखते रहे ऐसे सामाज का अंग होना हमे कतिपय मंजूर नहीं और उम्मीद करता हूँ को आपको भी नहीं होगा। कुछ कीजिये…..

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