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Revolt in LJP-: चाचा ने अपने घर के हीं चिराग तले किया अंधेरा।

BLN- Revolt in LJP– भारतीय राजनीति में इन दिनों चचा के हाथों अपने पिता की विरासत में सेंधमारी से परेशान भतीजों कि संख्यां बढ़ती ही जा रही है। यूपी वाले चचा का मामला कुछ शांत पड़ा तो अब बिहार में भी एक चाचा ने अपने भतीजे के पैरों तले जमीन खीच ली वो भी रातों रात। जी हाँ कुछ ऐसा हीं हुआ है लोजपा के अबतक राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान के साथ।

स्वर्गीय रामविलास पासवान कि पार्टी लोजपा टूट गयी है और पार्टी के वरिष्ठ नेता और रामविलास पासवान के छोटे भाई पशुपति कुमार पारस ने अपने हीं बड़े भाई के बेटे और लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान से बगावत कर दी है। बताया जा रहा है कि इस बगावत में लोजपा के वर्तमान 6 सांसदों में चिराग पासवान को छोड़ कर अन्य सभी 5 सांसदों का समर्थन पशुपति कुमार पारस को प्राप्त है। हालांकि पशुपति कुमार पारस इसे टूट का नाम नहीं दे रहे है बल्कि उनका कहना है कि पार्टी में सिर्फ नेतृत्व परिवर्तन हुआ है, आज भी लोजपा वही लोजपा है जो यह पहले हुआ करती थी।

चिराग पासवान के खुद के चाचा ने हीं उनके खिलाफ बगावत का बिगुल फूँक दिया है, और इस बगावत में पार्टी के छः में से पाँच सांसद (1) प्रिंस राज (2) पशुपति कुमार पारस (3) महबूब अली कैसर (4)चन्दन सिंह (5) वीणा देवी भी पशुपति कुमार पारस के साथ हैं।

पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में पार्टी के सभी पाँच सांसदों के हस्ताक्षर वाला एक पत्र लोकसभा के स्पीकर ओम बिड़ला को सौंपा गया है। पत्र में संसदीय दल के नेता के रूप मे चिराग पासवान की जगह पशुपति कुमार पारस को चुनने की बात कही गयी है, और साथ हीं उप नेता के रूप में महबूब अली कैसर तथा मुख्य सचेतक के रूप में नवादा के सांसद और सूरजभान सिंह के भाई चन्दन सिंह का नाम दिया गया है।

इन सभी खबरों के बीच चिराग पासवान अपने चाचा पशुपति कुमार पारस से मिलने दिल्ली में उनके आवास पर गए। बताया जा रहा है कि लगभग डेढ़ घंटे तक चिराग पासवान इंतज़ार करते रहे लेकिन पशुपति कुमार पारस से उनकी मुलाक़ात नहीं हो पायी और अंत में चिराग को बैरंग हीं वापस लौटना पड़ा।

लोजपा में हुई इस बगावत पर पशुपति कुमार पारस ने क्या कहा?

इस पूरे घटनाक्रम पर पशुपति कुमार पारस का कहना है कि कि राम विलास पासवान के देहांत के बाद चिराग पासवान ने जिस तरह पूरी पार्टी को चलाया उसके कारण पार्टी को बहुत नुकसान पहुंचा। कई कार्यकर्ता और नेता चिराग पासवान के गलत फैसलों के कारण पार्टी छोड़ कर चले गए।

बिहार विधान सभा चुनावों का ज़िक्र करते हुए पशुपति कुमार पारस ने एक मीडिया चैनल से बात करते हुए कहा कि चिराग पासवान कि अदूरदर्शिता और गलत फैसलों के कारण चुनावों में पार्टी लगभग समाप्ति के कगार पर पहुँच गई।

पार्टी के नेता और सांसद काफी लंबे समय से उनसे यह मांग कर रहे थे कि वे पार्टी का नेतृत्व अपने हाथों मे ले लें और लोजपा को खत्म होने से बचा लें। इसलिए अंततः उन्हे यह फैसला लेना पड़ा।

चिराग पासवान पर बोलते हुए पशुपति कुमार पारस ने कहा कि वह हमारे भतीजे हैं। परिवार के सदस्‍य हैं। मुझे यह कदम सिर्फ पार्टी को बचाने के लिए उठाना पड़ा है। उन्‍होंने आरोप लगाया कि लोजपा के अध्यक्ष चिराग पासवान के नेतृत्व में पार्टी में लोकतंत्र समाप्त हो गया था। स्‍व.रामविलास पासवान के दिखाए रास्‍ते पर चलती रहेगी। उन्‍होंने कहा कि रामविलास पासवान के सपनों को साकार करने के लिए ही उन्‍हें यह कदम उठाना पड़ा। उन्‍होंने चुनाव के दौरान और पिछले दिनों पार्टी छोड़कर चले गए नेताओं से अपील की कि वे पार्टी में लौट आएं। पशुपति कुमार पारस ने कहा कि वह लोजपा को डूबने नहीं देंगे। पार्टी स्‍व.रामविलास पासवान के दिखाए रास्‍ते पर चलती रहेगी।

लोजपा में चिराग पासवान को किनारे लगाने के क्या हैं मायने

विगत विधानसभा चुनाव में जिस प्रकार चिराग पासवान और उनकी पार्टी लोजपा एनडीए का हिस्सा रहते हुए बिहार में अलग चुनाव लड़ी और इन चुनावों में चिराग ने नितीश कुमार को सीधे निशाने पर लिया था उसके कारण जेडीयू को काफी नुकसान झेलना पड़ा था। ये अलग बात है कि लोजपा को बस एक सीट से हीं संतुष्ट होना पड़ा लेकिन नीतीश कुमार की जेडीयू को चिराग पासवान के कारण कम से कम 15 सीटों का नुकसान झेलना पड़ा था।

जेडीयू ने इस नुकसान की भरपाई चुनाव के बाद लोजपा नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करके पूरी करने की कोशिश की। लेकिन जख्म गहरा था और नुकसान बड़ा था इतने से बात बन नहीं रही थी। लोजपा के एकमात्र विधायक राजकुमार सिंह को भी जेडीयू में शामिल करवाया गया।

आपको बता दूँ की लोजपा अपने जन्म के समय से हीं एक ऐसी पार्टी रही है जिसके नेताओं को विपक्ष में रहने की ज्यादा आदत नहीं रही है। विधान सभा चुनाव के समय भी पार्टी के ज़्यादातर नेता और खुद पशुपति कुमार पारस भी जेडीयू और नीतीश कुमार के खिलाफ जा कर चुनाव लड़ने के चिराग के फैसले से खुश नहीं थे। पशुपति कुमार पारस ने चुनाव के समय नीतीश कुमार और उनके काम की तारीफ भी की थी लेकिन शाम होते होते उन्हें चिराग की नाराजगी के चलते अपना बयान वापस लेना पड़ा था।

लोजपा मे आज हुई बगावत का बीज तो विधानसभा चुनावों के समय हीं पड़ चुका था, और जेडीयू द्वारा समय समय पर इसमे सही मात्र में खाद और पानी डाला गया जिसके परिणाम स्वरूप आज चिराग पासवान को अपनी हीं पार्टी से बेदखल होना पड़ा।

लोजपा में चिराग पासवान के बाद पार्टी का चेहरा अब कौन होगा?

एक दौर था जब लोजपा का अभिप्राय और मतलब राम विलास पासवान हुआ करते थे। राम विलास पासवान का जब देहांत हुआ उससे काफी पहले हीं उन्होने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर चिराग पासवान को पार्टी और राजनीति में उतार दिया था।

रामविलास पासवान के देहांत के बाद पार्टी का चेहरा बने चिराग पासवान। सामने था बिहार विधान सभा चुनाव। पार्टी एक सीट पर सिमट कर रह गई। लेकिन फिर भी राजनीतिक पंडितों और जानकारों ने चिराग को उतना कमतर भी नहीं आँका जितना एक सीट लाने वाली पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को आंकना चाहिए। इसके पीछे कई कारण थे चाहे वह वोटों का बढ़ा हुआ प्रतिशत हो या फिर लोजपा के कारण सत्तारूढ़ गठबंधन को हुआ नुकसान। इस चुनाव में चिराग पासवान को कई कसौटियों पर परखा गया, कुछ में चिराग फेल हुए तो कुछ में पास।

लोगो के ज़ेहन में एक बात स्पष्ट हो गयी थी की लोजपा मतलब चिराग पासवान। अब पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन हो गया चिराग पासवान की जगह पशुपति कुमार पारस आ गए।

पशुपति कुमार पारस एक अच्छे रणनीतिकार हो सकते हैं लेकिन क्या वे पार्टी का चेहरा भी हो सकते हैं जैसा की राम विलास पासवान और उनके बाद चिराग पासवान थे। यह एक बड़ा प्रश्न है जिसका जवाब पार्टी के नेताओं को हीं तलाशना होगा।     

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