साथियों इस बात से हम भली भांति परिचित हैं की समस्त योगासनों में सूर्य नमस्कार का अपना एक विशेष महत्व है। कोई भी व्यक्ति यदि नित्य सूर्य नमस्कार को अपने दैनिक जीवन में अनुशासन और नियम के साथ करता है तो वह कई शारीरिक परेशानियों से दूर रह सकता है।
इस आर्टिक्ल में आपको सूर्य नमस्कार के विषय में विस्तारपूर्वक सभी जानकारी प्रदान की जाएगी ताकि आप भी अपने जीवन में सूर्य नमस्कार को सही विधि से कर सकें और इस आसन का सम्पूर्ण लाभ उठा सकें।
सूर्य नमस्कार क्या है?
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सूर्य नमस्कार का सरल अर्थ है ‘सूर्य को प्रणाम’। वैदिक युग में ऋषि मुनियों द्वारा सूर्य नमस्कार की परंपरा हमें प्राप्त हुई है। सूर्य आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक है।
प्राचीन काल में दैनिक सूर्योपासना का विधान नित्य कर्म के रूप में था। योग में सूर्य का प्रतिनिधित्व पिंगला अथवा सूर्य नाड़ी द्वारा होता है। सूर्य नाड़ी प्राण-वाहिका है जो जीवनी-शक्ति का वहन करती है।
सूर्य नमस्कार स्वं में एक पूर्ण साधना है, क्योंकि इसमे आसन, प्राणायाम मंत्र और ध्यान की विधियों का समावेश किया गया है। प्रातः कालीन अभ्यास प्रारम्भ करने के लिए यह सर्वोत्तम आसन समूह है।
सूर्य नमस्कार कब करें?
सूर्य नमस्कार के अभ्यास के लिए सबसे उपयुक्त समय सूर्योदय का समय है। सुबह का समय दिन का सबसे अधिक शांत समय होता है। जब भी संभव हो खुली हवा में सूर्योदय के समय सूर्य की ओर मुख कर अभ्यास करें।
सूर्यास्त का समय भी अभ्यास के लिए ठीक है क्योंकि उस समय अभ्यास करने से भूख ज्यादा लगती है। सूर्य नमस्कार का अभ्यास किसी भी समय किया जा सकता है बस आपका पेट खाली होना चाहिए।
सूर्य नमस्कार में कितने आसन होते हैं?(Suray Namaskar Me Kitne Aasan Hote Hain)
सूर्य नमस्कार में कुल 12 आसान होते हैं जो इस प्रकार हैं।
- प्रणामासन
- हस्तउत्तानासन
- पाद हस्तासन
- अश्व संचालनासन
- पर्वतासन
- अष्टांग नमस्कार
- भुजंगासन
- पर्वतासन
- अश्व संचालासन
- पाद हस्तासन
- हस्त उत्तानासन
- प्रणामासन
- प्रणामासन
प्रणामासन
दोनों पंजों को एक साथ रखकर सीधे खड़े रहें। कोहनियों को धीरे-धीरे मोड़े और हाथों को जोड़कर नमस्कार की मुद्रा में वक्ष के सामने ले आयें और सृष्टि के ऊर्जाश्रोत सूर्य को नमन करें।
प्रणामासन करते समय साँसों की गति को सामान्य रखें।
मंत्र- ॐ मित्राय नमः।
प्रणामासन के लाभ
सूर्य नमस्कार का पहला आसन है प्रणामासन। प्रणामासन से मन को शांत और एकाग्र करने में सहायता मिलती है।
हस्त उत्तनासन
दोनों भुजाओं को सिर के ऊपर उठाकर उनमें खिंचाव पैदा करें। भुजाओं के बीच कंधों की चौड़ाई के बराबर दूरी रखें। सिर, भुजाओं और धड़ के ऊपरी भाग को थोड़ा सा पीछे झुकाएँ।
मंत्र- ॐ रवये नमः।
हस्त उत्तनासन के लाभ
यह आसन पेट के सभी अंगों में खिंचाव उत्पन्न करता है और पाचन में सुधार लाता है। इसमें भुजाओं और कंधों की पेशियों का ब्यायाम होता है। यह मेरुदंड की तंत्रिकाओं को शक्ति प्रदान करता है, फेफड़ों को फैलाता है और बढ़े हुईए वजन को कम करता है।
पाद हस्तासन
सामने की ओर झुकते जाएँ जब तक कि उँगलियाँ अथवा हथेलियाँ पंजों के बगल में जमीन को स्पर्श न करने लगे। इस क्रम में अपने ललाट को घुटने का स्पर्श कराने का प्रयाश करें। अधिक ज़ोर न लगाएँ और घुटनों को सीधा रखें।
हस्त उत्तनासन करते समय सांस अंदर कि ओर ले और पाद हस्तासन करते समय सांस बाहर कि ओर छोड़े।
सावधानियाँ- जिनहे पीठ में दर्द कि समस्या हो वे पूरी तरह आगे कि ओर न झुकें, जितना आराम से झुक सकें उतना हीं झुकें।
मंत्र- ॐ सूर्या नमः।
पाद हस्तासन के लाभ
यह आसन पेट या आमाशय के रोगों का उन्मूलन अथवा निरोध के लिए उपयोगी है। इस आसन से पेट का बढ़ा हुआ ब्व्हार घटता है, पाचन में सुधार होता है और कब्ज़ दूर होती है। इसके साथ हीं इससे रक्त संचार में सुधार होता है, मेरुदंड में लचीलापन आता है और मेरुदंड कि तंत्रिकाओं को शक्ति प्राप्त होती है।
अश्व सांचालनासन
हथेलियों को पंजों के बगल में जमीन पर सीधा रखें। दाहिने पैर को जितना संभव हो पीछे कि ओर ले जाएँ, साथ हीं बायें पंजे को जमीन पर उसी स्थिति में रखते हुए बायें घुटने को मोड़ें।
भुजाओं को सीधा रखें। अंतिम स्थिति में शरीर का भार दोनों हाथों, बायें पैर, दाहिने घुटने और दाहिने पैर की उँगलियों पर रहना चाहिए।
सिर को पीछे झुकाएँ, पीठ को धनुषाकार बनाएँ तथा आंतरिक दृष्टि को ऊपर की ओर भ्रूमध्य पर केन्द्रित रखें। दाहिने पैर को पीछे ले जाते समय सांस लें।
ॐ भानवे नमः।
अश्व संचालनासन के लाभ
यह आसन आमाशय के अंगों की मालिश करता है और उनकी कार्य क्षमता को बढ़ाता है, पैरों की पेशियों को सुदृढ़ बनाता है और तंत्रिका तंत्र में संतुलन लाता है।
पर्वतासन
बायें पंजे को पीछे ले जाकर दाहिने पंजे के बगल मे रखें। साथ हीं नितंबों को उठाएँ और सिर को भुजाओं के बीच ले आयें, जिससे पीठ और पैर एक त्रिभुज की दो भुजाओं के समान दिखाई दे। अंतिम स्थिति में पैर और भुजाएँ सीधी रहें। एड़ियों को जमीन पर तथा सिर को घुटनों की ओर लाने का प्रयास करें लेकिन अधिक ज़ोर न लगाएँ। बायें पैर को पीछे ले जाते समय सांस छोड़े।
मंत्र- ॐ खगाय नमः।
पर्वतासन के लाभ
यह आसन भुजाओं और पैरों के स्नायुओन एवं पेशियों को शक्ति प्रदान करता है। मेरुदंड के स्नायुओं को पुष्ट करता है और विशेष रूप से मेरुदंड के ऊपरी भाग में रक्त संचार को बढ़ाता है।
अष्टांग नमस्कार
घुटनों, वक्ष और ठुड्ढी को नीचे लाकर जमीन का स्पर्श करायें। अंतिम स्थिति में केवल पैरों की उँगलियों, घुटने, वक्ष हांथ और ठुड्ढीजमीन का स्पर्श करेंगी। घुटने, वक्ष और ठुड्ढी एक हीं साथ जमीन का स्पर्श करें।
यदि यह संभव न हो तो सबसे पहले घुटनों को जमीन का स्पर्श करायें, फिर वक्ष को और अंत में ठुड्डी को। नितंब, श्रेणी और उदर प्रदेश जमीन से थोड़ा ऊपर उठे रहें। इस स्थिति में सांस को बाहर हीं रोके रखें।
मंत्र- ॐ पुष्णे नमः।
अष्टांग नमस्कार के लाभ
यह आसान पैरों और भुजाओं की पेशियों को सुदृढ़ बनाता है और वक्ष को विकसित करता है।
भुजंगासन
नितंबों और श्रेणी प्रदेश को नीचे लाकर जमीन का स्पर्श करायें। कोहनियों को सीधा करते हुए पीठ को धनुषाकार बनायें और छाती को सर्प की तरह आगे की ओर ले आयें।
सिर को पीछे की ओर झुकाएँ और दृष्टि ऊपर की ओर भ्रूमध्य पर केन्द्रित करें। जांघ को जमीन पर हीं रखें। दोनों हाथों के सहारे धड़ को ऊपर उठाए रखें। जब तक मेरुदंड अधिक लचीला न हो जाए भुजाएँ थोड़ी मुड़ी हुई रहेंगी। धड़ को उठाते और पीठ को धनुषाकार बनाते समय श्वास लें।
मंत्र- ॐ हिरण्यगर्भाय नमः।
भुजंगासन के लाभ
यह आसान पीठ में रक्त संचार में सुधार लाकर और मेरदंड की तंत्रिकाओं को शक्ति प्रदान कर मेरुदंड को लचीला बनाए रखता है। यह जननांगों को पुष्ट करता है, पाचन क्रिया को बढ़ाता है और कब्ज़् को दूर करता है। यह यकृत को भी शक्ति प्रदान करता है और गुर्दे एवं एड्रीनल ग्रंथियों की मालिश करता है।
पर्वतासन
यह 5वीं स्थिति की पुनरावृत्ति है। भुजंगासन से पर्वतासन में आ जायें। हांथ और पंजे स्थिति 7 के हीं स्थान पर रखें। नितंबों को ऊपर उठाएँ और एड़ियों को जमीन पर ले आयें।
मंत्र- ॐ मरीचये नमः।
अश्व संचालनासन (मंत्र- ॐ आदित्याय नमः।) , पाद हस्तासन (ॐ सवित्रे नमः।), हस्त उत्तनासन (ॐ अर्काय नमः) और प्रणामासन (ॐ भास्कराय नमः) की विधि ऊपर बतायी गई है वैसे हीं करें।
सूर्य नमस्कार के बारह चरणों का अभ्यास दो बार पूरा करने पर 1 चक्र पूर्ण होता है। स्थिति 1 से 12 तक आधा चक्र होता है। दूसरे अर्ध चक्र में 2 लघु परिवर्तनों के साथ पहले किए गए आसनों की पुनरावृत्ति की जाती है।
स्थिति 16 यानि की अश्व संचालनासन में दाहिने पैर को पीछे ले जाने के बदले बायें पैर को पीछे ले जायें।
स्थिति 21 में दाहिने पैर को मोड़ें और उसे दोनों हाथों के बीच ले आयें।
प्रत्येक अर्ध चक्र के पूर्ण होने पर भुजाओं को बगल में नीचे ले आयें, शरीर को शिथिल करें और सांस के सामनी होने तक अपनी सांसों के प्रति सजग रहें।
एक दिन में कितनी बार करें सूर्य नमस्कार
आध्यात्मिक लाभ के लिए धीरे-धीरे 3 से 12 चक्र अभ्यास करें। शारीरिक लाभ के लिए 3 से 12 चक्र अभ्यास द्रुत गति से करें। प्रारंभिक अभ्यासी को 2 या 3 चक्रों से शुरू करना चाहिए और कुक सप्ताह के बाद एक-एक चक्र बढ़ाते जाना चाहिए जिससे कि अत्यधिक थकान का अनुभव न हो।
किन लोगों को सूर्य नमस्कार नहीं करना चाहिए
सूर्य नमस्कार उन लोगों को नहीं करना चाहिए जिन्हे उच्च रक्तचाप या जिन्हें दिल का दौरा पड़ा हो क्योंकि इससे दुर्बल हृदय या रुधिर वाहिका तंत्र अधिक उत्तेजित अथवा क्षतिग्रस्त हो सकता है। हर्निया या जिन्हे आंतों की टीबी है उनके लिए भी यह अभ्यास वर्जित है।
पीठ की समस्या वालों को यह अभ्यास प्रारम्भ करने के पूर्व किसी चिकित्सक से परामर्श ले लेना चाहिए। महिलाओं को मासिक धर्म आरंभ होते समय इस अभ्यास को नहीं करना चाहिए।
सूर्य नमस्कार करने के लाभ
सूर्य नमस्कार के सम्पूर्ण अभ्यास से कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। यह रक्त परिसंचरण, श्वसन और पाचन प्रणाली सहित समस्त संस्थानों को उद्दीप्त और संतुलित करता है। पीयूष ग्रंथि और हाईपो थैलेमस पर इसका जो प्रभाव होता है उससे पीयूष ग्रंथि का अपक्षय और कैल्सीकरण रुक जाता है।
बढ़ते बच्चों में बाल्यावस्था और किशोरावस्था के बीच जो संधिकाल होता है यह आसन उसमें संतुलन लाता है।