Home APNA BIHAR बिहार के सरकारी अस्पतालों मे जाकर शर्म और असंवेदनशीलता भी बेशर्म और...

बिहार के सरकारी अस्पतालों मे जाकर शर्म और असंवेदनशीलता भी बेशर्म और क्रूर होकर बाहर निकलते हैं।

muzaffarpur sadar hospital news

BLN- मुजफ्फरपुर: “जांच रिपोर्ट के आधार पर दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी।“ जी हाँ यही जवाब दिया मुजजफरपूर के सदर अस्पताल के सीएस ने जब ऑन ड्यूटि डॉक्टर और हॉस्पिटल स्टाफ की लापरवाही से एक 8 वर्ष की बच्ची राधा की जीवन लीला समाप्त हो गई।

बिहार के सरकारी अस्पतालों मे जाकर शर्म और असंवेदनशीलता भी बेशर्म और क्रूर होकर बाहर निकलते हैं। एक ढूंढिए हज़ार उदाहरण मिल जाएँगे आपको इनके कारनामों के। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ आपको इस घटना से मालूम पड़ जाएगा।  

मामला है मुजफ्फरपुर के सदर हॉस्पिटल का जहां मुशहरी थाना के रघुनाथपुर निवासी संजय राम अपनी 8 साल की बेटी राधा को लेकर इलाज करवाने पहुंचे थे। राधा के गले में लीची खाते समय लीची का बीज फस गया था। आनन फानन में पिता अपनी बेटी को लेकर सादर हॉस्पिटल पहुँच गया।

पर्ची काटने के बाद संजय को अपनी बेटी का कोरोना जांच कराने के लिए कहा गया, बिना कोरोना जांच के हॉस्पिटल का कोई भी डॉक्टर और स्टाफ उस मासूम बच्ची का इलाज़ करने के लिए तैयार नहीं हुआ।

दो घंटे तक पिता अपनी बेहोश बच्ची को गोद मे लिए कोरोना जांच करवाने के लिए और फिर रिपोर्ट के इंतज़ार में भटकता रहा किसी ने भी राधा की सुध नहीं ली और अंत में 8 वर्षीय राधा ने अपने  पिता के गोद में हीं दम तोड़ दिया।

संजय अपने जिस कंधे पर राधा को जीवित हॉस्पिटल ले कर गया था उसी कंधे पर दो घंटे बाद हॉस्पिटल की लापरवाही के कारण उसका शव लेकर वापस अपने घर लौट गया।

जिस हॉस्पिटल ने एक जिंदा बच्ची को दो घंटे में शव में तब्दील कर दिया हो हम अब उससे यह उम्मीद रखें की वह शव को घर तक पहुंचाने के लिए शव वाहन की भी व्यवस्था करे तो उस हॉस्पिटल के साथ इससे बड़ी नाइंसाफी तो कुछ और हो हीं नहीं सकती है।

यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि अगर राधा को समय पर इलाज़ मिल गया होता तो उसकी जान बच सकती थी, और अगर इलाज़ मिलने के बाद उसकी मृत्यु भी होती तो कम से कम एक पिता यह सोचकर संतोष कर लेता कि उसने प्रयास किया बाँकी भगवान कि मर्ज़ी।

आए दिन बिहार के सरकारी हॉस्पिटल से ऐसे हृदय विदारक दृश्य और खबरे आती हीं रहती हैं, लेकिन क्या मजाल जो इनकी कार्यशैली में कोई बदलाव हो जाए। आवश्यकता है कि बिहार के सरकारी हॉस्पिटल में काम करने वाले सभी कर्मचारियों एवं डॉक्टरों को अपने काम के अलावे कम से कम छह महीने का अतिरिक्त प्रशिक्षण दिया जाये जिसमे इन्हे मानवता, दया, सेवा और संवेदनशीलता जैसे प्राकृतिक गुणों से परिचित करवाया जाए। (यहाँ मैं एक बात स्पष्ट कर दूँ कि ऐसा भी नहीं है कि सरकारी हॉस्पिटल के सभी कर्मचारी एवं डॉक्टर निर्दयी और संवेदनहीन हैं।)  

जब पत्रकारों ने सिविल सर्जन से सवाल किया तो उन्होंने पहले अपने डॉक्टर का बचाव किया. लेकिन फिर पूछने पर उन्होंने जांच कमिटी गठित करने की बात कही. सिविल सर्जन डॉ एसके चौधरी ने कहा है कि एमरजेंसी में कोरोना जांच की औपचारिकता की कोई जरूरत नही है. इस मामले में उस समय एमरजेंसी में तैनात डॉक्टर से पूछताछ की जा रही है। “जांच रिपोर्ट के आधार पर दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी।“

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version