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मोदी से बैर नहीं नितीश तेरी खैर नहीं , चिराग की लोजपा क्यों बन रही है बीजेपी के असंतुष्टों का दूसरा घर ?

BLN– बिहार चुनाव में चिराग पासवान  ने एनडीए के साथ बड़ा खेल कर दिया है। चिराग हर दिन खेल रहे हैं। इस खेल के पीछे उनका मकसद सिर्फ एक ही है , नीतीश के तीर को मरोड़ कर बिहार की सत्ता से बेदखल कर देना ।  नीतीश के तीर को मरोड़ने के लिए चिराग पासवान ‘कमल’ के बागियों को अपने पाले में कर रहे हैं। अपने घर को उजड़ते देख भी बीजेपी खामोश है। नीतीश  कुमार  के साथ बैठ कर बीजेपी नेताओं ने चिराग को लेकर टो टूक बात तो जरूरी की है। लेकिन ये किसी ने नहीं बताया कि वह एनडीए में हैं या नहीं हैं। ऐसे में सवाल यह है कि आखिर डंके की चोट पर चिराग किसके सह पर भिड़ रहे हैं।

सियासी गलियारों में चर्चा यह भी है कि क्या बीजेपी नीतीश कुमार के खिलाफ कोई चाल चली है। इस खेल में क्यों बीजेपी ने चिराग को मोहरा बनाया है। चिराग ने 24 घंटे के अंदर बीजेपी के 3 बड़े विकेट गिराए हैं। तीनों बीजेपी के कद्दावर और पुराने नेता रहे हैं। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि बीजेपी खुल कर चिराग पर बोल क्यों नहीं रही है। एनडीए की प्रेस कॉन्फ्रेंस में चिराग को लेकर 11 सवाल पूछे गए थे लेकिन किसी भी सवाल का बीजेपी नेताओं ने सीधे जवाब नहीं दिया है।

सबसे दिलचस्प है राजेंद्र सिंह का जाना

दिनारा से 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार रहे राजेंद्र सिंह एलजेपी में शामिल हो गए हैं। राजेंद्र सिंह संघ के प्रचारक रहे हैं। 2015 के चुनाव में, तो यहां तक चर्चा थी कि अगर वह जीतते हैं, तो बीजेपी उन्हें सीएम बनाएगी। 2015 में ये चर्चा इसलिए थी कि राजेंद्र सिंह चुनावी मैदान में कभी उतरे नहीं थे। वह संघ के प्रचारक रहे हैं। दिनारा सीट पहली बार चुनाव लड़े थे। जेडीयू के जय कुमार सिंह से राजेंद्र सिंह महज ढाई हजार वोटों से चुनाव हारे थे। इनके प्रचार के लिए संघ और एबीवीपी के बड़े-बड़े नेता पहुंचे थे। झारखंड चुनाव के दौरान इन्होंने चुनाव का कार्य भी संभाला था।

इनका जाना खटक रहा है सभी को

राजेंद्र सिंह पुराने संघी रहे हैं। एक झटके में उन्होंने टिकट की चाहत में पार्टी छोड़ दी है। सियासी गलियारों में यह बात किसी को हजम नहीं हो रही है। राजनीतिक विश्लेषकों को इसमें कुछ खेल नजर आता है। उन्हें लगता है कि बीजेपी कहीं नीतीश कुमार के साथ कोई चाल तो नहीं चल रही है। क्योंकि दिनारा में संघ की अच्छी पकड़ है। अगर राजेंद्र सिंह मैदान में एलजेपी की तरफ से रहेंगे, तो जेडीयू उम्मीदवार का जयकुमार सिंह का ही वोट काटेंगे। जय कुमार से 2010 से यहां लगातार चुनाव जीत रहे हैं। गठबंधन की वजह से यह सीट शुरू से ही जेडीयू के खाते में ही रही है। 2015 में यहां बीजेपी अकेले लड़ी थी।

झाझा में भी चिराग ने किया है खेल


वहीं, झाझा एनडीए में रहने के दौरान जेडीयू के पास ही रहा है। 2015 में बीजेपी यहां अकेले चुनाव लड़ी थी। 20 साल से विधायक रहे दामोदर रावत को हरा कर बीजेपी के उम्मीदवार रविंद्र यादव चुनाव जीत गए। इस बार सीट जेडीयू के खाते में चला गया है। ऐसे में रविंद्र यादव ने एलजेपी का दामन थाम लिया है। एलजेपी ने उन्हें सिंबल दे दिया है। ऐसे में झाझा में भी मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया।

पालीगंज का भी वहीं हाल
बिहार में जब से बीजेपी और जेडीयू का गठबंधन है। उसके बाद से ही पालीगंज विधानसभा सीट बीजेपी के खाते में हैं। 2010 में यहां से बीजेपी की ऊषा विद्यार्थी विधायक थीं। पार्टी ने 2015 में ऊषा विद्यार्थी का टिकट काट दिया और रामजन्म शर्मा को टिकट दिया। रामजन्म शर्मा आरजेडी के उम्मीदवार बच्चा यादव से चुनाव हार गए। बच्चा यादव इस बार जेडीयू में हैं और सीट भी जेडीयू के खाते में है। पिछली बार टिकट नहीं मिलने पर ऊषा विद्यार्थी ने पार्टी नहीं छोड़ी। इस बार सीट जेडीयू के खाते में गया, तो वह पार्टी छोड़ दीं और एलजेपी ज्वाइन कर लीं। वहीं, स्थानीय बीजेपी नेता पहले से ही बच्चा यादव की उम्मीदवारी को लेकर नाराज हैं। ऐसे में इस सीट पर जेडीयू को भीतरघात का सामना करना पड़ सकता है।

इस खेल को समझिए
एनडीए में सीट बंटवारे के बाद बीजेपी+ के खाते में 121 सीटें आई हैं और जेडीयू+ 122 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। बिहार विधानसभा में सदस्यों की कुल संख्या 243 है। किसी भी दल को सरकार बनाने के लिए 122 सीटों को जरूरत पड़ती है। एलजेपी उन-उन सीटों पर उम्मीदवार उतार रही है, जिन पर बीजेपी की स्थिति मजबूत है। अगर चुनाव नतीजे आते हैं, और नीतीश कुमार से बीजेपी की ज्यादा सीटें आती हैं, तो यहां खेल की संभावना है।

नेताओं ने दिए गोल-गोल जवाब
मंगलवार को महागठबंधन की प्रेस कॉन्फ्रेंस में बीजेपी नेताओं से यह सवाल किया गया था कि अगर नीतीश कुमार को कम सीटें मिलती हैं, तो उन्हें आपलोग नेता मानेंगे। इस पर बीजेपी नेताओं ने कहा था कि उससे कोई असर नहीं पड़ेगा। क्योंकि सारी चीजें पहले से ही क्लियर है। नीतीश कुमार के साथ हमारा पुराना गठबंधन है।

बीजेपी खामोश क्यों है


वहीं, बिहार बीजेपी के कई बड़े नेता एक-एक कर एलजेपी में जा रहे हैं। बीजेपी के बागियों के लिए एलजेपी का दरबार खुला है। उसके बावजूद बीजेपी चुप्पी साधी है। खुल कर बीजेपी के नेता चिराग पासवान पर बोल नहीं रहे हैं। राजेंद्र सिंह ने एलजेपी की सदस्यता ग्रहण करने के बाद कहा था कि कार्यकर्ताओं के दबाव में यह फैसला ले रहा हूं। विचारधारा अभी भी हमारी वही है। इसी वजह से सवाल उठ रहे हैं कि क्या बीजेपी में यहां कोई खेल कर रही है.

बढ़ गईं है तल्खियां
वहीं, बिहार के सीएम नीतीश कुमार के साथ चिराग पासवान की तल्खियां कम नहीं हो रही हैं। जानकारी के अनुसार रामविलास पासवान का हाल जानने के लिए नीतीश कुमार ने चिराग को कई बार फोन किया था। लेकिन नीतीश कुमार का उन्होंने कभी फोन नहीं उठाया है। बताया जा रहा है कि बीजेपी के कुछ और बागी आने वाले दिनों में चिराग की पार्टी में शामिल हो सकते हैं।

INPUT-:NBT

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