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Anil Ram ‘The’ Real Hero of Munger- मेरे हीरो अनिल राम और आपके..

Anil Ram The Real Hero of Munger

Munger:प्रायः हम सभी इस बात से वाकिफ हैं कि हमारे जीवन में पेंड़ पौधों का क्या महत्व है .पेंड़ पौधों के बिना तो मानव जीवन की कल्पना करना भी बेमानी है. वर्तमान समय में जब लोग अपनी जरूरतों की पूर्ती के लिए जंगलों और पेंड़ो को साफ़ करने में जुटे हुए हैं उन्हें काटने में लगे हुए हैं तो ठीक उसी वक्त एक शख्स निःस्वार्थ भाव से मुंगेर की सड़कों के किनारे पेंड़ लगाकर उन्हें छाया प्रदान कर रहा है.

हम अक्सर फिल्मी अभिनेताओं, नेताओं और क्रिकेटरों में अपने हीरोज या रोल मॉडल को ढूंढते है लेकिन क्या आप यकीन करेंगें की मुझे मेरा हीरो एक चाय की दूकान पर बिल्कुल साधारण से कपड़े  पहने एक कोने में अकेले बैठा हुआ मिल गया.

अनिल राम जी के द्वारा लगाए गए कुछ पेंड़.

जी हाँ ऐसा हीं कुछ हुआ जब मैं शिक्षा विभाग के एक चतुर्थ वर्गीय सेवानिवृत कर्मचारी अनिल राम जी से मिला. शाम के समय किला परिसर स्थित आंबेडकर चौक के समीप चाय की दूकान पर चाय पीते समय इनसे मेरा परिचय हुआ. अतिसाधारण वेश भूषा में एक कोने में सहज से बैठे इस शख्स से बात करके मुझे प्रतीत हुआ की शायद इन जैसे लोगों के कारण हीं हम जैसे लोग जो अपनी जिम्मेवारियों से विमुख हैं वो आज के माहौल में भी खुली और साफ़ हवा में सांस ले पा रहे हैं.

मुंगेर के कृष्णापुरी मोहल्ले में रहने वाले अनिल राम जी अब तक लगभग 2500 पेंड़ लगा चुके हैं. बस इतना हीं नहीं इन पेंड़ों की देखभाल, घेरेबंदी और रख रखाव का कार्य भी यह स्वं अपने खर्च से हीं करते हैं. हो सकता है की आप में से कईयों को लगे की इसमें कौन सी बड़ी बात है, लेकिन मैं आपको यह बता दूं की एक चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी के लिए यह एक बड़ी बात है कि वह अपने खर्चों में कटौती करके पेंड और पौधों को जीवन दे रहा हो.

अनिल राम जी से बात करके पता चला की उनका यह सफर 1997 से उस समय आरम्भ हुआ जब एक बार वे किसी काम से अपने घर से लगभग १५ किलोमीटर दूर बरियारपुर गए हुए थे, वहां उनका पर्स चोरी हो गया जिसके बाद उनके पास घर वापस लौटने का गाड़ी भाड़ा भी नहीं बचा, फिर क्या जेठ की दुपहरी में अनिल राम जी पैदल हीं मुंगेर के लिए निकल पड़े.

सड़क जब अंगेठी का अंगार बन चूका था और आसमान आग उगल रहा था उस समय उन्हें छाया की दरकार महसूस हुई लेकिन उन्हें सड़क किनारे एक भी वृक्ष न मिला. जैसे तैसे अनिल राम अपने लक्ष्य तक तो पहुँच गए लेकिन सही मायनों में उन्हें उसी दिन अपने जीवन का वास्तविक लक्ष्य मिल गया .  

एक वह दिन था और एक आज का दिन अनिल राम जी अनवरत पेंड़ लगाते जा रहे है. मुंगेर के किला परिसर में लगे लगभग 2500 पेंड़ अनिल राम के उसी प्रतिज्ञां का प्रतिफल हैं जो उन्होंने बरियारपुर से लौटते समय जेठ की दुपहरी में लिया था.    

चुकी इनका कार्यालय किला परिसर में हीं स्थित था इसलिए कार्यालय से निकलने के बाद ये आस पास पेंड़ लगाते चले गए और आज यह आंकडा 2500 के पार पहुँच चुका है और निःसंदेह यह सिलसिला अभी और आगे जाएगा.

आप सबों से अनुरोध है की जब भी आप मुंगेर के किला परिसर में जाएँ और तन कर खड़े किसी बरगद, पीपल, पाकड़ के नीचे सुस्ताने के लिए कुछ छण के लिए रुकें तो एक बार मन ही मन अनिल राम जी को धन्यवाद अवश्य बोलिएगा, क्योंकि यही तो हैं हमारे समाज के असली हीरो. Anil Ram The Real Hero of Munger

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