Home Bihar News Bihar Election: तेजस्वी पर आंच, लालू का अंदाज देख राहुल छोड़ेंगे साथ?...

Bihar Election: तेजस्वी पर आंच, लालू का अंदाज देख राहुल छोड़ेंगे साथ? बिहार में कांग्रेस का इतिहास भी जानिए

0
Bihar Election: तेजस्वी पर आंच, लालू का अंदाज देख राहुल छोड़ेंगे साथ? बिहार में कांग्रेस का इतिहास भी जानिए

कांग्रेस चाहती थी कि बिहार विधानसभा की 243 सीटों में से उसे पिछली बार की तरह 70 सीटों के आसपास इस बार भी मिले। मगर, यह नहीं हो सका। कांग्रेस चाहती थी कि लालू प्रसाद यादव लोकसभा चुनाव 2024 की तरह बगैर सीटें तय हुए राष्ट्रीय जनता दल के प्रत्याशियों को किसी सीट पर नामांकन के लिए चुनाव चिह्न न बांटें। मगर, यह हो रहा है। कांग्रेस चाहती थी कि बगैर किसी चेहरे को सामने रखे वह चुनाव में उतरे ताकि समय-परिस्थिति के हिसाब से वह खुद को आगे बढ़ा सके। लेकिन, यह होता नहीं दिख रहा है। बात इतनी ही नहीं। कांग्रेस की इच्छा बगैर मुकेश सहनी को तवज्जो मिल रही। ऐसा लग रहा, जैसेतेजस्वी यादव को सीएमऔर मुकेशसहनी कोडिप्टी सीएम बनाने के लिए कांग्रेस इस चुनाव में उतरेगी। और, अब तो तेजस्वी सहित लालू के रजानीतिकपरिवार पर एक और घोटाले का आरोप पत्र।… यह बातें कांग्रेस को पहले परेशान और अब बेचैन कर रही हैं। इसलिए, बार-बार यह बात भी आ रही है कि कांग्रेस का हाथ कहीं लालटेन का साथ न छोड़ दे!

राहुल गांधी की तैयारी और रणनीति के कारण भी कांग्रेसी बुलंद

कांग्रेस के नंबर वन नेता राहुल गांधी ने बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी इस बार विपक्षी दलों में तो सबसे पहले शुरू की ही, सत्ता पक्ष से भी पहले वह सक्रिय हो गए। साल की शुरुआत से ही राहुल गांधी लगातार बिहार पर फोकस कर रहे। आ-जा रहे। यात्राओं से पहले भी बार-बार आकर संगठन में जान फूंकने की कोशिश की। अगड़ी जाति के वोटरों से बहुत उम्मीद नहीं देख, कांग्रेस में पिछली जातियों को तवज्जो दी। संगठन में बड़ा बदलाव किया। प्रदेश प्रभारी पसंद का दिया। प्रदेश अध्यक्ष पिछड़े वर्ग से दिया।

यह सभी जान रहे थे कि मतदाताओं के विशेष गहन पुनरीक्षण के मुद्दे को उठाकर बहुत कुछ हासिल नहीं होगा, फिर भी इस नाम पर लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने बिहार में लंबी यात्रा की। शुरुआत में तेजस्वी यादव को आगे रखा और फिर महागठबंधन के दायरे से निकल राष्ट्रीय स्तर पर लोकसभा चुनाव के पहले बनेविपक्षी गठबंधन- I.N.D.I.A. के बाकी घटक दलों को बिहार लाया। और तो और, महागठबंधन सरकार के समय बिहार में हुई जाति आधारित जनगणना पर सवाल उठाते हुए इसे गलत करार दिया, ताकि पिछड़ी जातियों की सहानुभूति हासिल हो सके। सोनिया गांधी के दौर के बाद राहुल गांधी के समय में कांग्रेसियों ने पहली बार पार्टी को इस तरह मुखर होते देखा। राहुल गांधी की तैयारी और रणनीति के कारण कांग्रेसी बुलंद थे कि इस बार बिहार में राजद या लालू की नहीं चलेगी। मगर…

अब क्या चल रहा, जिसके कारण कांग्रेस की बेचैनी चरम पर

सोमवार को जबIRCTC घोटाले में तेजस्वी यादव के खिलाफ भी आरोप-पत्र दायर हो गया तो कांग्रेस के कई नेताओं के मुंह से यह बात सुनने को मिली कि ऐसी ही आशंका के कारण राहुल गांधी ने एक बार भी तेजस्वी यादव को बिहार में विपक्षी दलों की ओर से मुख्यमंत्री का संभावित चेहरा नहीं बताया है। वास्तव में राहुल गांधी ने इस सवाल को टाल दिया था और फिर आजादी के बाद पहली बार बिहार में कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति के दरम्यान भी जब मीडिया ने बाकी नेताओं से यह सवाल पूछा था तो सीधे-सीधे तेजस्वी को सीएम का चेहरा नहीं बताते हुए यह कहा गया था कि सामने तो वही हैं। अब एक तरफ लालू-तेजस्वीIRCTC घोटाले में चार्जशीटेड हुए और दूसरी तरफ लालू प्रसाद ने लोकसभा चुनाव की तरह प्रत्याशियों को सिम्बल बांटना शुरू कर दिया। कांग्रेस के कई प्रत्याशियों ने नामांकन का एलान किया, लेकिन महागठबंधन के प्रमुख दल राजद के इस रुख से कांग्रेस बेचैन हो उठी है। सिम्बल को वामपंथी दल भी दे रहे हैं, क्योंकि समय नहीं है। लेकिन, बाकी दल अपनी पक्की सीट पर सिम्बल दे रहे हैं, जबकि लोकसभा चुनाव की तरह लालू प्रसाद इस बार भी कांग्रेस की पसंदीदा और पक्की मानी जाने वाली सीटों पर सिम्बल जारी करते दिख रहे हैं। कांग्रेस के विरोध के कारण ही यह बात भी आ रही है कि तेजस्वी यादव ने लालू यादव का बांटा हुए सिम्बल भी वापस ले लिया।

भविष्य को समझने के लिएकांग्रेस का इतिहास भी जानना चाहिए

राष्ट्रीय जनता दल बिहार का सबसे बड़ा क्षेत्रीय दल है और विपक्षी गठबंधन की कमान इसके पास है, इसमें कोई शक नहीं है। लालू प्रसाद यादव के उभरने के समय से ही यह स्थिति है। इसी स्थिति के बीच कई बार कांग्रेस ने राजद के नेतृत्व से अलग होने की भी कोशिश की थी, लेकिन रिकॉर्ड कहता है कि कांग्रेस लालू से कभी उबर ही नहीं सकी। यह हालत तब है, जबआजादी के बाद देश की तरह बिहार में भी कांग्रेस का ही राज रहा था। भारत निर्वाचन आयोग के आंकड़ोंको देखें तो1951 में जब बिहार विधानसभा में 276 सीटें थीं तो कांग्रेस के 239 विधायक थे। वर्ष 1957 में 264 सीटें थीं तो कांग्रेस के 210 विधायक थे। 1962 में जब 318 सीटें हुईं तो कांग्रेस के 185 विधायक थे।

1969 में 318में से 118 विधायक कांग्रेसी थे। 1972 में कांग्रेसी विधायकों की संख्या बढ़कर 167 हो गई थी। 1977 में बिहार विधानसभा मेंसीटों की संख्या 324 हो गई थी और जेपी आंदोलन के बाद हुए इस चुनाव मेंपहली बार कांग्रेस औंधे मुंह गिरकर 57 पर आई थी। लेकिन, 1980 में उसने जबरदस्त वापसी भी कर ली।इस बार 324 में से 169 कांग्रेसी रहे।अगले चुनाव में कांग्रेस ने324 सीटों में से 323 पर प्रत्याशी दिए और 196 पर जीती। फिर बड़े बदलाव का दौर आया। क्षेत्री दलों का उभार हुआ।लालू तो ऐसे उभरे के 1990 में उन्होंने कांग्रेस को 71 पर ला खड़ा किया। कांग्रेस ने 1985 की तरह 324 सीटों में से 323 पर प्रत्याशी दिए, लेकिन उसे जीत महज 71 पर मिली।कांग्रेस से सत्ता छीनने के बाद लालू यादव ने लंबे समय तकउसे साथ भी रखा है, लेकिन नुकसान का दौर खत्म नहीं हुआ। 1995 में कांग्रेस ने 324 में से 320 सीटों पर चुनाव लड़ा और महज 29 विधायकों की पार्टी बनकर रह गई।

वर्ष2000 में कांग्रेस ने हिम्मत दिखाई औरचुनाव अकेले लड़ने उतरी तो324 में से महज 23 सीटें मिलीं। इस बड़ी हार के बाद फिर कांग्रेसराजद सरकार के साथ आ गई। इसके बाद, 2005 में दो बार चुनाव हुए थे। फरवरी 2005 के चुनाव के समय कांग्रेस क्षेत्रीय दलों पर निर्भर पार्टी के रूप में स्थापित हो चुकी थी। इस चुनाव में कांग्रेस ने राजद का साथ छोड़ा था और राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के साथ उतरी। लोजपा ने 178 सीटों पर प्रत्याशी दिए और29 सीटें जीतीं। कांग्रेस ने 84 प्रत्याशी दिए और10 विधायक चुने गए। राष्ट्रपति शासन के बादअक्टूबर2005 में चुनाव हुए तो कांग्रेस ने 51 सीटों पर प्रत्याशी देकर नौ पर जीत हासिल की।कांग्रेस ने राजद का साथ तो बनाए रखा, लेकिन 2010 का चुनाव अकेले उतर कर देखा। इस बार सभी 243 सीटों पर उसने प्रत्याशी दिए, लेकिन महज चार सीटों पर आकर टिक गई। मतलब, कांग्रेस अकेले लड़कर भी लालू-राबड़ी-तेजस्वी के दौर में कुछ बड़ा नहीं कर सकी है। बिहार चुनाव2015 में राजद ने कांग्रेस को41 सीटें दीं, जिसमें वह27 जीत सकी।इस बार नीतीश कुमार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन छोड़कर लालू प्रसाद यादव के साथ महागठबंधन में आए थेतो कांग्रेस को भी सत्ता का स्वाद मिला। विधानसभा चुनाव 2020 में राजद ने कांग्रेस को 70 सीटों पर लड़ने का मौका दिया, जिसमें से वह 19 सीटें जीत सकी।

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version