BLN– राजनीति कब क्या खेल दिखा जाये ये कोई नहीं जानता , और खासकर मौका जब चुनावों का हो तब तो राजनीति रूपी ऊंट किस करवट बैठेगा ये तो अच्छे – अच्छे राजनीतिक पंडित भी नहीं बता सकते हैं । कुछ ऐसा ही आलम है बिहार विधानसभा चुनावों मे , कब कौन सा दल किसके साथ गठबंधन कर ले और किसका वर्षों का साथ एक पल मे छोड़ दे यह शायद कोई नहीं जानता यहाँ तक की स्वयं उस राजनीतिक दल के सुप्रीमो को भी यह पता नहीं होता है की कल की तारीख मे उन्हे किसके साथ गठबंधन करना पड़ जाये , शायद इसीलिए राजनीति को अनिश्चितताओं का खेल भी कहा जाता है ।
बिहार की राजनीति मे आजकल कुछ ऐसा ही हो रहा है । पहले उपेंद्र कुशवाहा ने (Upendra Kushwaha ) महागठबंधन का साथ छोड़ मायावती की पार्टी बसपा के साथ चुनाव लड़ने का ऐलान किया लेकिन अब जब सन ऑफ मल्लाह के नाम से मशहूर मुकेश सहनी ने अपना चूल्हा चौका महागठबंधन से अलग किया तो खबर आ रही है की ये दोनों नेता JAAP सुप्रीमो पप्पू यादव के साथ मिलकर एक अलग ही मोर्चा खोलने की तैयारी मे लगे हुए हैं।
पार्टी से जुड़े सूत्रों से जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक मुकेश सहनी ने शनिवार की शाम से अभी तक दो बार पप्पू यादव को फोन किया है जिसमें दोनों नेताओं के बीच बात हुई है. आज पप्पू यादव और मुकेश सहनी के बीच मुलाकात होगी जिसके बाद शाम तक उपेंद्र कुशवाहा मुकेश सहनी और पप्पू यादव का गठबंधन हो सकता है.
मालूम हो कि शनिवार को पटना के होटल मौर्या में प्रेस वार्ता के दौरान ही मुकेश सहनी ने राजद पर पीठ में खंजर घोंपने का आरोप लगाते हुए महागठबंधन से अलग होने का एलान किया था. वो बिहार से 20-25 सीटें चाहते थे लेकिन ऐसा नहीं हो सका था. मुकेश सहनी ने विरोध करते हुए कहा था कि मेरे पीठ पर ख़ंजर मारा गया है. महागठबंधन का साथ छोड़ने वाले मुकेश सहनी किस तरफ जाते हैं, सभी की निगाहें इसी पर टिकी हैं.
मुकेश सहनी ने पटना में रविवार को कहा कि तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी ने सभी लोगों को ठगा है चाहे वो जीतन राम मांझी हो उपेंद्र कुशवाहा हों या फिर मैं. मुकेश सहनी ने कहा कि जो शख्स अपने बड़े भाई को आगे नहीं बढ़ने दे सकता वो अति पिछड़ों को कैसे बढ़ने दे सकता है.
मुकेश ने कई आरोप लगाते हुए कहा कि तेजस्वी ने सीट से लेकर डिप्टी सीएम तक का पद देने तक में ठगने का काम किया है. साफ है की राजनीति जब निजी महत्वकक्षाओं को संतृप्त करने का जरिया बन जाती है, तब राजनीति भी अनिश्चितताओं का खेल बनकर रह जाती है ।